।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्लचतुर्थी, वि.सं.२०७३, बुधवार
छूटनेवालेको ही छोड़ना है



(गत ब्लॉगसे आगेका)

अब इसमें थोड़ी-सी बात समझें । जैसे अग्निका ढेर हो, उसमें एकदम पानी डाल दिया जाय । तो पानी डालनेसे अग्नि तो बुझ जायगी; परन्तु उस समय उसके भीतर कोई हाथ रख दे तो हाथ जल जायगा, फफोले हो जायेंगे । अग्नि तो बिलकुल नहीं है उसमें; परन्तु हाथ रख दें तो हाथ जल जायगा । सिद्ध क्या हुआ ? अग्नि तो बुझ गयी, पर अग्निका प्रभाव नष्ट नहीं हुआ । उसके नष्ट होनेमें देरी लगेगी । अग्निके बुझनेमें देरी नहीं लगी, ऐसे ही वृक्ष काट दिया जाय, जड़से काटकर अलग कर दिया जाय । वह तो कट ही गया, अब पीछा हरा हो नहीं सकता; परन्तु उसकी जो पत्तियाँ है, वह कई दिनोंतक गीली रहेंगी, पतली टहनीकी पत्तियाँ जल्दी सूख जायँगी; परन्तु हरी टहनीकी पत्तियाँ जल्दी नहीं सूखेंगी । पेड़के पास अगर पाँच, दस पत्तियाँ हों, वह कई दिनों-तक नहीं सूखेंगी । तो इनके न सूखनेपर भी वृक्ष हरा नहीं होगा । एक बार कट गया तो कट ही गया । इसी तरहसे ही असत्‌के साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है उसको काट दो ।

परमात्माके साथ हमारा नित्य-सम्बन्ध है, उसको मान लो । न मानो तो एक ही कर लो । परमात्माके साथ सम्बन्धको अभी रहने दो । संसारके साथ सम्बन्ध हमारा है ही नहीं । इसको काट दो, बिलकुल नहीं है । कितना ही आपको दीखे । कितना ही आपपर असर हो जाय । कितनी ही वृत्तियाँ खराब हो जायँ तो भी इस निर्णयको मत छोड़ो । इसके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है । जैसे पेड़ कटनेपर भी पत्ती हरी रहती है, ऐसे पुराने प्रभावसे असर पड़ जाय, वृत्तियाँ भी खराब हो जायँ तो भी इनसे घबराओ नहीं । उसमें समय लगेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे