।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
छूटनेवालेको ही छोड़ना है



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जैसे आग पानी डालते ही बुझ गयी, बुझनेमें समय नहीं लगा; परन्तु ठण्डी होनेमें समय लगेगा । इसी तरहसे परमात्मतत्त्व ‘है’ और संसार ‘नहीं है’ । इसका सम्बन्ध नहीं है । संसार कैसा है ? कैसा नहीं है ? इसकी कोई जरूरत नहीं है, हमारे साथ इसका सम्बन्ध नहीं है ।

जैसे बाल्यावस्थाके साथ आपका सम्बन्ध नहीं रहा । बूढ़े हो गये तो जवानीके साथ सम्बन्ध नहीं रहा तो अब वृद्धावस्थाके साथ सम्बन्ध कैसे रहेगा ? शरीरके साथमें सम्बन्ध-विच्छेद हो रहा है । गर्भमें आये तबसे लेकर सौ वर्षकी उम्रतक निरन्तर वियोग हो रहा है, आपका वियोग तो है ही । अब इस बातको आप मान लें तो वियोग आपका हो गया, हो गया, हो ही गया । अब उसका प्रभाव आपके देखनेमें न आवे तो उसकी आप चिन्ता मत करो । इतनी बात मेरी मान लो । चाहे बोध होनेमें कई वर्ष लग जायँ तो भी परवाह नहीं; परन्तु कट गया, इसमें किंचिन्मात्र सन्देह नहीं । जितनी यह दृढ़ता होगी आपकी, उतना जल्दी प्रभाव नष्ट हो जायगा । और इसमें ढिलाई करते रहोगे जहाँ प्रभाव नहीं दीखा, पीछा इस बातको ढीला करते रहोगे, तो भाई ! उम्रभर भी शान्ति नहीं होगी । आपको दीखेगा नहीं, अनुभव नहीं होगा, इस बातको ढीला करते रहे तो ।

एक ही बातपर आप कृपा करके आज दृढ़ता कर लो । ‘व्यवसायात्मिका बुद्धिरेका’ भगवान् कहते हैं उसकी निश्चयवाली बुद्धि एक ही होती है ।

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां         तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥
                                                   (गीता २ । ४४)

भोग और ऐश्वर्यमें आसक्त है, उनकी बुद्धि निश्चय नहीं करती । तो बुद्धिके निश्चय न करनेमें एक तो रुपयोंके संग्रहका आग्रह है और एक सुख-भोगका आग्रह है । ये दो महान् आग्रह है । इसके सिवाय कोई बाधा नहीं है । ‘मेरे रुपये रह जायँ, ज्यादा संग्रह कर लूँ और सुख भोग लूँ’‒यें दो महान् बाधाएँ है । इनकी परवाह मत करो । सच्ची बात यही है । कितना ही रुपया प्यारा लगे, कितना ही भोग प्यारा लगे; परन्तु ये छूटेगा जरूर । क्या पता ? ख्याल करके सुनना, बहुत दामी बात है ।

भोग कितना ही प्यारा लगे, उससे ग्लानि होती है, उससे उपरति होती है, उससे आप स्वयं सम्बन्ध-विच्छेद करते हो, उसका तो आप आदर करते नहीं और संयोगका आदर करते हो‒यह बड़ी भारी गलती होती है । लाखों रुपये आपके पासमें पड़े है और अभी इन्क्वायरी आ जाय तो मनसे चाहते है कि अभी रुपये पासमें नहीं रहते तो अच्छा था । उस समयमें उनका नहीं होना चाहते हैं, पर उस बातको आप आदर नहीं देते हो । ऐसे ही परमात्माके सम्बन्धको और संसारके वियोगको आप आदर नहीं देते हो, महत्त्व नहीं देते हो । यही बड़ी भारी गलती है और कोई गलती नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे