।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
जाति जन्मसे मानी जाय या कर्मसे ?






(गत ब्लॉगसे आगेका)

वर्तमानमें चारों वर्णोंमें गड़बड़ी आ जानेपर भी यदि चारों वर्णोंके समुदायोंको इकट्ठा करके अलग-अलग समुदायमें देखा जाय तो ब्राह्मण-समुदायमें शम, दम आदि गुण जितने अधिक मिलेंगे, उतने क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-समुदायमें नहीं मिलेंगे । क्षत्रिय-समुदायमें शौर्य, तेज आदि गुण जितने अधिक मिलेंगे, उतने ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र-समुदायमें नहीं मिलेंगे । वैश्य-समुदायमें व्यापार करना, धनका उपार्जन करना, धनको पचाना (धनका भभका ऊपरसे न दीखने देना) आदि गुण जितने अधिक मिलेंगे, उतने ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र-समुदायमें नहीं मिलेंगे । शूद्र-समुदायमें सेवा करनेकी प्रवृत्ति जितनी अधिक मिलेगी, उतनी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-समुदायमें नहीं मिलेगी । तात्पर्य यह है कि आज सभी वर्ण मर्यादारहित और उच्छृंखल होनेपर भी उनके स्वभावज कर्म उनके समुदायोंमें विशेषतासे देखनेमें आते हैं अर्थात् यह चीज व्यक्तिगत न दीखकर समुदायगत देखनेमें आती है ।

जो लोग शास्त्रके गहरे रहस्यको नहीं जानते, वे कह देते हैं कि ब्राह्मणोंके हाथमें कलम रही, इसलिये उन्होंने ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ है’ ऐसा लिखकर ब्राह्मणोंको सर्वोच्च कह दिया । जिनके पास राज्य था, उन्होंने ब्राह्मणोंसे कहा‒क्यों महाराज ! हमलोग कुछ नहीं हैं क्या ? तो ब्राह्मणोंने कह दिया‒नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं । आपलोग भी हैं, आपलोग दो नम्बरमें हैं । वैश्योंने ब्राह्मणोंसे कहा‒क्यों महाराज ! हमारे बिना कैसे जीविका चलेगी आपकी ? ब्राह्मणोंने कहा‒हाँ, हाँ, आपलोग तीसरे नम्बरमें हैं । जिनके पास न राज्य था, न धन था, वे ऊँचे उठने लगे तो ब्राह्मणोंने कह दिया‒आपके भाग्यमें राज्य और धन लिखा नहीं है । आपलोग तो इन ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्योंकी सेवा करो । इसलिये चौथे नम्बरमें आपलोग हैं । इस तरह सबको भुलावेमें डालकर विद्या, राज्य और धनके प्रभावसे अपनी एकता करके चौथे वर्णको पददलित कर दिया‒यह लिखनेवालोंका अपना स्वार्थ और अभिमान ही है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे