।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७३, सोमवार

गृहस्थ-धर्म


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒मनुष्यऋण क्या है और उससे छूटनेका उपाय क्या है ?

उत्तर‒बिना किसीकी सहायता लिये हमारा जीवन-निर्वाह नहीं होता । हम दूसरोंके बनाये हुए रास्तेपर चलते हैं, दूसरोंके बनाये हुए कुएँका पानी काममें लेते हैं, दूसरोंके लगाये हुए पेड़-पौधोंको काममें लेते हैं, दूसरोंके द्वारा उत्पन्न किये हुए अन्न आदि खाद्य पदाथोंको काममें लेते हैं‒यह उनका हमपर ऋण है । दूसरोंकी सुख-सुविधाके लिये कुआँ खुदवानेसे, प्याऊ लगानेसे, बगीचा लगानेसे, रास्ता बनवानेसे, धर्मशाला बनवानेसे, अन्न-क्षेत्र चलानेसे हम मनुष्यऋणसे मुक्त हो सकते हैं ।

पितृऋण, देवऋण, ऋषिऋण, भूतऋण और मनुष्यऋण‒ये पाँचों ऋण गृहस्थपर ही लागू होते हैं । जो भगवान्‌के सर्वथा शरण हो जाता है, वह पितर, देवता आदि किसीका भी ऋणी नहीं रहता, सभी ऋणोंसे छूट जाता है ।

प्रश्न‒यदि कोई संतान न हो तो अपने सम्बन्धियोंके अथवा अनाथ बालक-बालिकाओंको गोद लेना चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒आजकलके जमानेमें गोद न लेना ही अच्छा है; क्योंकि अपना पैदा किया हुआ बेटा भी सेवा नहीं करता, आज्ञा नहीं मानता तो गोद लिया हुआ बेटा क्या निहाल करेगा ! यद्यपि पिण्ड-पानी देनेके लिये गोद लेनेका विधान तो है, पर वह पिण्ड-पानी ही नहीं देगा तो उसको गोद लेना किस कामका ? यदि हमारे लिये लड़केकी आवश्यकता होती तो भगवान्‌ दे देते । हमारे लिये लड़केकी आवश्यकता नहीं है, इसलिये भगवान्‌ने नहीं दिया है । अतः हम गोद लेकर अपने लिये आफत क्यों पैदा करें ! प्रायः ऐसा देखा गया है कि गोद लिये हुए लड़के माँ-बापको दुःख-ही-दुःख देते हैं, उनकी सेवा नहीं करते । अतः अनाथ बालकोंको पढ़ाना चाहिये, उनकी सेवा करनी चाहिये, उनके शरीर-निर्वाहका प्रबन्ध करना चाहिये ।

प्रश्न‒अगर कोई बेटा नहीं होगा तो वृद्धावस्थामें हमारी सेवा कौन करेगा ?

उत्तर‒जिनके बेटे हैं, क्या वे सभी अपने माँ-बापकी सेवा करते हैं ? आजकलके बेटे तो माँ-बापकी धन-संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं और श्राद्ध-तर्पणको फालतू समझते हैं तो ऐसे बेटे क्या सेवा करेंगे ? वे तो केवल दुःखदायी होते हैं । वास्तवमें प्रारब्धसे जैसी सेवा बननेवाली है, जितना सुख-आराम मिलनेवाला है, वह तो मिलेगा ही, चाहे पुत्र हो या न हो । हमने यह प्रत्यक्ष देखा है कि विरक्त सन्तोंकी जीतनी सेवा होती है, उतनी सेवा गृहस्थोंके बेटे नहीं करते । तात्पर्य है कि बेटा होनेसे ही सेवा होती है, यह बात नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे