।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि

आषाढ़ शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार

गृहस्थ-धर्म



(गत ब्लॉगसे आगेका)


प्रश्न‒अगर कोई बेटा नहीं होगा तो मरनेके बाद हमें पिण्ड-पानी कौन देगा और पिण्ड-पानी न मिलनेसे हमारी गति कैसे होगी ?

उत्तर‒पिण्ड-पानी देनेसे पिण्ड-पानी लेनेवालोंका आगे जन्म-मरण चालू होता है । जैसे रास्तेमें चलनेवाला व्यक्ति भूख-प्यासके कारण कहीं रुक जाता है, रास्तेमें अटक जाता है और अन्न-जल मिलनेके बाद फिर अपने रास्तेपर चल पड़ता है, ऐसे ही मृतात्माओंको पिण्ड-पानी न मिलनेसे वे एक जगह अटक जाते हैं, रुक जाते हैं और पिण्ड-पानी मिलनेसे वे वहाँसे चल पड़ते हैं अर्थात् उनकी आगे गति शुरू हो जाती है, उनका जन्म-मरण चालू हो जाता है; परन्तु उनकी मुक्ति, कल्याण नहीं होता ।

वास्तवमें मुक्ति होना, कल्याण होना संतानके अधीन किंचिन्मात्र भी नहीं है । अगर मुक्ति संतानके अधीन हो तो मुक्ति पराधीन हुई ! फिर मनुष्य-जन्मकी स्वतन्त्रता कहाँ रही ? कल्याणमें, मुक्तिमें जब शरीरकी आसक्ति भी बाधक है, तो फिर मरनेके बाद भी पुत्रसे पिण्ड-पानीकी आशा कल्याण कैसे होने देगी ? वह तो बन्धनमें ही डालेगी । अतः जो अपना कल्याण चाहता है, उसको पुत्रैषणा (पुत्रकी इच्छा), लोकैषणा (संसारमें आदर-सत्कार, मान-बड़ाईकी इच्छा) और वित्तैषणा (धनकी इच्छा)‒इन तीनोंका त्याग कर देना चाहिये, क्योंकि ये तीनों ही परमात्मप्राप्तिमें बाधक हैं ।

जिसको संतानकी, पिण्ड-पानीकी इच्छा है, वह जन्म-मरणके चक्रमें पड़े रहना चाहता है; क्योंकि कहीं जन्म होगा, तभी तो वह पिण्ड-पानी चाहेगा । अगर जन्म होगा ही नहीं तो पिण्ड-पानी किसको चाहिये !

पुत्र न होनेसे कल्याण नहीं होता‒यह बात बिलकुल गलत है । अगर संतान होनेसे कल्याण होता तो सूकरीके ग्यारह और सर्पिणीके एक सौ आठ बच्चे होते हैं, फिर उनका तो कल्याण हो ही जाना चाहिये ! ऐसे ही ज्यादा बच्चेवालोंका कल्याण जल्दी होना चाहिये, पर वह होता नहीं ।

संतान हो अथवा न हो, मनुष्यको केवल भगवान्‌में ही लगना चाहिये; भगवान्‌के परायण होकर भगवान्‌का भजन करना चाहिये । अगर पुत्रकी इच्छा न मिटती हो तो निःसंतान मनुष्यको चाहिये कि वह श्रीरामललाको, श्रीकृष्णललाको अपना पुत्र मान ले और पुत्र-भावसे उनका लाड़-प्यार करे । वह पुत्र (भगवान्‌) जैसी सेवा करेगा, वैसी सेवा पैदा किया हुआ पुत्र कर ही नहीं सकता ! वह पुत्र तो लोक परलोकका सब काम कर देगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे