।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण द्वितीया, वि.सं.२०७३, गुरुवार

किसानोंके लिये शिक्षा




(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सच्ची बात मैंने सुनी है । मेरे पास पक्का प्रमाण नहीं है, पर मैंने सुना है कि सौ वर्षोंमें हिन्दू नष्ट हो जायँ‒ऐसी एक दुरभिसन्धि है । जितने मरेंगे, उतने तो कम होंगे ही, नसबंदी, ऑपरेशन आदि करानेसे हिन्दू और कम हो जायेंगे और सौ वर्षोंतक सब नष्ट हो जायँगे‒ऐसा विचार हो गया है । उसी स्कीमको आप काममें ले रहे हो ! मेरेको कई साधुओंने कहा कि ये बातें आप क्यों कहते हो ? यह काम तो गृहस्थोंका है । परन्तु विचार करें, गृहस्थोंमेंसे ही तो साधु होते हैं । हिन्दू गृहस्थ नहीं रहेंगे तो फिर साधु कौन होगा ? गीता, रामायण आदि ग्रन्थ कौन पढ़ेगा ? क्या ईसाई और मुसलमान पढ़ेंगे ?

आज खेतीके लिये मजदूर नहीं मिलते । मिलें भी कैसे ? गर्भ गिराकर, ऑपरेशन करके, नसबंदी करके आदमियोंको नष्ट कर दिया । खेती करनेवाले कहते हैं कि मजदूरोंको चालीस-पचास रुपया प्रतिदिन और कारीगरोंको डेढ़-दो सौ रुपया प्रतिदिन देना पड़ता है । अगर आपके घर बालकोंकी कमी न हो तो दूसरोंको इतना रुपया क्यों देना पड़े ? अगर घरमें दस बालक हों, वे अगर काम करें तो चालीस रुपयेके हिसाबसे चार सौ रुपये रोजाना आयेंगे । अन्न इतना महँगा तो है नहीं कि वे चार सौ रुपयेका अन्न रोजाना खा जायँ ! अगर चार सौ रुपयोंमेंसे दो सौ रुपयेका अन्न खा लें, तो भी दो सौ रुपये बचते हैं ! दूसरी बात, घरके आदमी जितना काम करेंगे, उतना काम मजदूर नहीं करेंगे ।

सारा अन्न इकट्ठा करनेपर बस, इतना ही है, अब ज्यादा आदमी पैदा हो जायँगे तो उनके हिस्सेमें थोड़ा-थोड़ा ही आयेगा‒यह बात है ही नहीं ! जहाँ आदमी ज्यादा होंगे, वहाँ अन्न भी ज्यादा होगा । जहाँ वृक्ष ज्यादा होते हैं, वहाँ वर्षा भी ज्यादा होती है । आवश्यकता आविष्कारकी जननी है । भगवान्‌के यहाँ कोई अँधेरा नहीं है । आप थोड़े-से लोभमें आकर बड़ा भारी पाप, अन्याय और नाश (भ्रूणहत्या) कर रहे हो ! खेतीमें तो ज्यादा पैदा करनेकी चेष्टा करते हो और आदमियोंका नाश करनेकी चेष्टा करते हो । पर विचार करो कि खेती किसके काम आयेगी ? इकट्ठा किया हुआ धन किसके काम आयेगा ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे