।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण तृतीयावि.सं.२०७३, शुक्रवार
किसानोंके लिये शिक्षा





(गत ब्लॉगसे आगेका)

नशा-सेवन

दूसरा महापाप है‒मदिरा पीना । ऋषिकेशमें एक सन्तसे बात हुई तो उन्होंने कहा कि अपने-आप मरी हुई गायका मांस खानेसे हिन्दूको जो पाप लगता है, उससे भी ज्यादा पाप मदिरा पीनेसे लगता है । इसलिये भाइयो ! मदिराका त्याग करो । मदिरा पीनेमें महान् नुकसान है । शरीरका नुकसान है । पैसोंका नुकसान है । तीस-चालीस रुपये रोजाना मजदूरीमें लेते हैं, पर घरमें तंगी रहती है । मदिरामें रुपये खो देते हैं । मदिराके कारण बड़े-बड़े राज्य चले गये । मदिरा पीनेमें बड़ी भारी हानि है । मदिरा पीकर पुरुष आपसमें लड़ते हैं, गालियाँ निकालते हैं, स्त्रियोंको मारते हैं; बच्चोंको मारते हैं ! घरमें भी कलह करते हैं, बाहर भी कलह करते हैं । ऐसा खराब व्यसन मत करो ।

अन्न और जल‒इन दोनोंके सिवाय और किसी चीजका व्यसन नहीं होना चाहिये । अन्न और जलके बिना काम नहीं चलता । जीनेके लिये इन्हें लेना ही पड़ता है । परन्तु चाय, काफी, बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तम्बाकू, अफीम, चिलम आदि न लें तो मनुष्य मरता थोड़े ही है ?

नशा काढ़ लीवी नसां, नशा किया सब नाश ।
नशा नाकिया नरक में,   अड़ी नशा में आश ॥

नशा-सेवन करके अपनी आदत खराब कर रहे हो, समय खराब कर रहे हो, पैसा खराब कर रहे हो, शरीर खराब कर रहे हो । नशा-सेवनसे कई बीमारियाँ लग जाती हैं । जो चाय पीते हैं, मदिरा पीते हैं, उनकी भीतरी आतें जल जाती हैं, जिससे उनको कोई दवाई नहीं लगती । एक बार नशेसे थोड़ा भभका-सा आता है, पर वह शक्ति स्थायी नहीं होती । जोधपुरमें मेरा काम पड़ा तो नहीं कहनेलायक बात मैंने कह दी ! मैंने कहा कि जो ज्यादा-से-ज्यादा नशा करनेवाला हो, वह चाहे तो मेरे साथ कुश्तीके लिये आ जाय ! जैसे मैं बोलता हूँ, वैसे वह बोले; जितना मैं चलता हूँ, उतना वह चले । किसी काममें मेरे साथ बराबरी करके दिखाये ! परन्तु उन बेचारोंके पास बल कहाँ है ? खर्चा लगा-लगाकर कमजोरी खरीदते हैं ! दाम दे-देकर परतन्त्रता खरीदते हैं ! जगत्‌में पराधीन होनेके समान कोई दुःख नहीं है‒‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं’ (मानस १ । १०२ । ३) । परन्तु आप मदिराके वशमें हो गये, चिलमके वशमें हो गये, हुक्काके वशमें हो गये, बीड़ी-सिगरेटके वशमें हो गये ! इनके बिना रहा नहीं जाता । मालवेकी भाषामें कहा है‒

हुक्को हिड़क्यो टेकड़ो, चिलम बणी है चंगी ।
पीवणवाला ऐसे लपके, ज्यूँ बाज पर भंगी ॥

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे