(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप साक्षात् भगवान्के अंश हो‒‘ममैवांशो
जीवलोके’ (गीता १५ । ७), ईस्वर
अंत जीव अबिनासी । चेतन अमल सहज सुखरासी ॥’ (मानस ७
। ११७ । १) । ऐसे होते हुए भी
आप नशेके वशमें हो गये, उसके गुलाम बन गये ! कितने पतनकी बात है ! चिलम-तम्बाकू पीकर पैसोंका धुआँ कर दिया, समयका
धुआँ कर दिया, स्वतन्त्रताका धुआँ कर दिया, जीवनका
धुआँ कर दिया, स्वास्थ्यका धुआँ कर दिया ! जोधपुरमें मैंने कहा कि जो भाई चिलम पीते हैं,
वे मेरेको बता दें कि चिलममें बड़े गुण हैं तो मैं भी खूब मौजसे
चिलम खींचना शुरू कर दूँगा ! अगर इसमें बड़ा लाभ है तो मैं पीछे क्यों रहूँ ?
परन्तु वास्तवमें कोई लाभ नहीं है,
नुकसान-ही-नुकसान है । हमारे यहाँ तो साधुओंमें अगर कोई नशा
करे तो उसे पंक्तिमें नहीं बैठाते ।
भाई-बहनोंसे प्रार्थना है कि आप नशा-सेवनसे बचो । आप मेरेपर
कृपा करो, अपने-आपपर कृपा करो,
अपने बाल-बच्चोंपर कृपा करो । आप व्यसन करोगे तो आपके बच्चे
भी वैसा ही सीख जायँगे । बालकपनमें ही उनको व्यसन लग जायगा तो फिर पीछे छूटना मुश्किल
हो जायगा । इसलिये सावधान रहो । आजकल बहनें-माताएँ छोटे-छोटे
बच्चोंको चाय पीना सिखा देती हैं । आजकलके बच्चे दूध नहीं पीते । बालकपनमें हम दूधमें
घी डालकर पिया करते थे । माँसे कहते थे कि दूध लूखा है, इसमें
घी डालकर तारा कर दे ! परन्तु आजकल दूधमें मलाई भी दीख जाय तो बच्चे नाक-मुँह सिकोड़ते
हैं ! पीछे वे कमजोर ही रहते हैं । आजकल बालकोंको जवानी आती ही नहीं; बालकपनसे
सीधे वृद्धावस्थामें चले जाते हैं ! बालकपनमें घी-दूधसे जो ताकत आती है, जो शरीर बनता है, वह वृद्धावस्थामें भी काम देता है । नशेसे तो बच्चे छोटी अवस्थामें
ही नष्ट हो जायेंगे ! इसलिये बहनों-माताओंसे प्रार्थना है कि वे बालकोंको चाय पीना,
अफीम, पानपराग आदि खाना मत सिखायें । बच्चा बीमार हो जाय,
टट्टी लग जाय तो अफीम दे देती हैं,
जिससे बड़ा नुकसान होता है । बच्चा बीमार हो तो माँको दवाई लेनी
चाहिये, जिससे माँका दूध पीकर बच्चा ठीक हो जाय । वास्तवमें वही माँ
कहलानेलायक है ।
मुफ्तमें अपना नुकसान मत करो । भगवान्का दिया अन्न-जल लो ।
साधारण कपड़ा पहनो, जिससे लज्जाका निवारण हो,
शीत-घामका निवारण हो । इससे आपके लोक और परलोक दोनोंका सुधार
होगा ।
चाहे तो ज्यादा पैदा कर लो और चाहे फालतू खर्चा मिटा दो‒दोनोंका
टोटल एक बैठेगा । ज्यादा पैदा करना तो हाथकी बात नहीं है, पर ज्यादा
खर्चा नहीं करना, व्यसन नहीं करना हाथकी बात है । इसलिये फालतू खर्चा
मत करो और अन्न तथा जलके सिवाय किसी भी नशेका सेवन मत करो ।
निरर्थक बातचीतमें अपना समय बर्बाद मत करो, बैठकर
हथाई मत करो । हथाई (निरर्थक बातचीत) करनेमें, चिलम
पीनेमें समय बरबाद मत करो, अपनी आदत खराब मत करो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे पुस्तकसे
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