।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७३, रविवार
किसानोंके लिये शिक्षा





(गत ब्लॉगसे आगेका)
मालिकोंके प्रति

ये जो बड़े-बडे सेठ हैं, धनी हैं, ये भी मजदूरोंको दबाते हैं और उनको कम दाम देकर ज्यादा-से-ज्यादा अनाज खींचते हैं ! उधर तो वे दान-पुण्य करते हैं, सन्तोंको, ब्राह्मणोंको भोजन कराते हैं, पर इधर बेचारे गरीबोंपर छुरी चलाते हैं ! एक गरीब आदमी साहूकारके यहाँ गया । वह उससे उधार लिया करता था । साहूकारके कानपर टँगी कलम नीचे गिर गयी तो वह बोला सेठजी ! सेठजी !! आपकी छुरी नीचे गिर गयी । सेठजीने कहा कि यह तो कलम है, छुरी कहाँ है ? वह आदमी बोला कि महाराज ! मेरा गला तो इसीने काटा है ! आप साहूकार कहलाते हो तो गरीबोंकी रक्षा करो, उनको पैसा ज्यादा दो, उनके घरमें वस्तु बचाओ ।

दरसावे जगमें दया,   पाप   उठावे पोट ।
हितमें चितमें हाथमें, खतमें मतमें खोट ॥

सब जगह खोट-ही-खोट है । किसानोंसे अनाज लेते समय तो अधिक लेते हो, कम दाम देते हो, पर उनको वस्तु देते समय कम वस्तु देते हो, कितना पाप है !

लेतां तो बदतो लेवे, देतां कसर पाव री ।
पीपां प्रत्यक देखिये,  बजारां में बावरी ॥

गरीबोंका कितना नुकसान करते हो और कहते हो कि दान-पुण्य करते हैं ! दान-पुण्यका फल तो कम होगा, पर पापका पलड़ा बहुत भारी होगा । दान-पुण्य करनेसे पाप नहीं कटते । दान-पुण्य करना ‘दीवानी’ है और पाप करना ‘फौजदारी’ है । दीवानी और फौजदारी‒दोनों परस्पर कटते नहीं हैं । पुण्यका फल अलग होगा, पापका फल अलग होगा ।

ऐरण  की   चोरी  करै,   करै   सुई  को  दान ।
चढ़ चौबारे देखण लाग्यो, कद आसी बीमान ॥

एक वेश्या थी । उसने सुन लिया कि सोमवती अमावस्याके दिन ब्राह्मणोंको जिमाने (भोजन कराने) से और दक्षिणा देनेसे बड़ा भारी पुण्य होता है । उसने जाकर ब्राह्मणोंसे कहा कि आप हमारे घर जीमने आओ । ब्राह्मणोंने कहा कि हम तेरा अन्न नहीं खायेंगे । एक भाँड़ (बहुरूपिया) था और उसने ब्राह्मणका रूप धारण किया हुआ था । वेश्याने उसके पास जाकर पूछा कि तुम कौन हो ? उसने कहा कि मैं पांडिया हूँ, तुम कौन हो ? वेश्याने कहा कि मैं तो खत्राणी हूँ । अच्छा पांडियोजी ! अमावस्याके दिन हमारे यहाँ भोजन कर लो । वह बोला‒हाँ-हाँ, कर लेंगे । सुबह पांडेजी आ गये । वेश्याने खीर, मालपूआ आदि बढ़िया-बढ़िया भोजन बनाकर खिलाया और दक्षिणा भी खूब दी । यह सब करनेके बाद वेश्या बाहर आकर आकाशकी तरफ देखने लगी । पांडे बने हुए भाँडने पूछा कि क्या देखती हो ? वह बोली कि सोमवती अमावस्याके दिन ब्राह्मणको भोजन कराकर दक्षिणा दे तो ठाकुरजीका विमान आता है, उसको देखती हूँ कि कहींसे आता है ? भाँड़ बोला‒

तू खत्राणी मैं पांडियो,  तू  बेश्या  मैं भाँड ।
तेरे जिमाये मो जीमने, पत्थर पड़सी राँड ॥

तात्पर्य है कि इस तरह करनेसे पुण्य नहीं होगा । आप अपना हृदय सीधा-सरल, सच्चा रखो । पाप मत करो । कपड़ा मैला करके पीछे धोते हो, तो पहले मैला ही क्यों करो ? पहलेसे ही सावधान रहो, पाप करो ही मत, जिससे पीछे उसे धोना ही न पड़े । मैला नहीं करोगे तो कपड़ा ज्यादा दिन चलेगा और बार-बार मैला करोगे तथा साबुनसे धोओगे तो कपड़ा बहुत जल्दी फट जायगा । इसलिये बाहरसे भी सफाई रखो और भीतरसे भी ।
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे