।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार

गृहस्थमें कैसे रहें ?




(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒पति और पत्नीका आपसमें कैसा व्यवहार होना चाहिये ?

उत्तर‒पतिका यही भाव रहना चाहिये कि यह अपने माता-पिता, भाई आदि सबको छोड़कर मेरे पास आयी है तो इसने कितना बड़ा त्याग किया है ! अतः इसको किसी तरहका कष्ट न हो, शरीर-निर्वाहके लिये इसको रोटी, कपड़े स्थान आदिकी कमी न हो, मेरी अपेक्षा इसको ज्यादा सुख मिले । ऐसा भाव रखनेके साथ-साथ उसके पातिव्रत-धर्मका भी खयाल रखना चाहिये, जिससे वह उच्छृंखल न बने और उसका कल्याण हो जाय ।

पत्नीका यही भाव रहना चाहिये कि मैं अपने गोत्र और सब कुटुम्बियों आदिका त्याग करके इनके पास आयी हूँ तो समुद्र लाँघकर अब किनारे आकर मैं डूब न जाऊँ अर्थात् मैं इतना त्याग करके आयी हूँ तो अब मेरे कारण इनको दुःख न हो, इनका अपमान, निन्दा, तिरस्कार न हो । अगर मेरे कारण इनकी निन्दा आदि होगी तो बड़ी अनुचित बात हो जायगी । मैं चाहे कितना ही कष्ट पा लूँ, पर इनको किंचिन्मात्र भी कष्ट न हो । इस तरह वह अपने सुख-आरामका त्याग करके पतिके सुख-आरामका खयाल रखे; उनका लोक-परलोक कैसे सुधरे‒इसका खयाल रखे ।

प्रश्न‒सास और बहूका आपसमें कैसा व्यवहार होना चाहिये ?

उत्तर‒सासका तो यही भाव होना चाहिये कि यह अपनी माँको छोड़कर हमारे घरपर आयी है और मेरे ही बेटेका अंग है, अतः मेरा कोई व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिये, जिसके कारण इसको अपनी माँ याद आये । बहूका यही भाव होना चाहिये कि मेरा जो सुहाग है, उसकी यह खास जननी है । जो मेरा सर्वस्व है, वह इसी वृक्षका फल है । अतः इनका आदर होना चाहिये, प्रतिष्ठा होनी चाहिये । कष्ट मैं भोगूँ और सुख इनको मिले । ये मेरे साथ चाहे जैसा कड़वा बर्ताव करें, वह मेरे हितके लिये ही है । यह प्रत्यक्ष देखनेमें आता है कि मेरे बीमार होनेपर मेरी सास जितनी सेवा करती है, उतनी सेवा दूसरा कोई नहीं कर सकता । वास्तवमें मेरे साथ हितैषितापूर्वक जैसा सासका व्यवहार है, वैसा व्यवहार और किसीका दीखता नहीं और सम्भव भी नहीं ! इन्होंने मेरेको बहूरानी कहा है और अपना उत्तराधिकार मेरेको ही दिया है । ऐसा अधिकार दूसरा कौन दे सकता है ! इनका बदला मैं कई जन्मोंमें भी नहीं उतार सकती । अतः मेरे द्वारा इनको किंचिन्मात्र भी किसी प्रकारका कष्ट न हो । इसी तरह अपने भाई-बहनोंसे भी जेठ-जेठानी, देवर-देवरानीका आदर ज्यादा करना है । जेठ-जेठानी माता-पिताकी तरह और देवर-देवरानी पुत्र-पुत्रीकी तरह हैं । अतः यही भाव रखना चाहिये कि इनको सुख कैसे हो ! मैं केवल सेवा करनेके लिये ही इनके घरमें आयी हूँ; अतः मेरी छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बडी क्रिया केवल इनके हितके लिये, सुख-आरामके लिये ही होनी चाहिये । मेरे साथ इनका कैसा व्यवहार है‒इस तरफ मुझे खयाल करना ही नहीं है; क्योंकि इनके कड़वे व्यवहारमें भी मेरा हित ही है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे