।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
गृहस्थ-धर्म




(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒गृहस्थाश्रममें कैसे रहना चाहिये ?
उत्तर‒यह मनुष्य-शरीर और इसमें भी गृहस्थ-आश्रम उद्धार करनेकी पाठशाला है । भोग भोगने और आराम करनेके लिये यह मनुष्य-शरीर नहीं है । ‘एहि तन कर फल बिषय न भाई’ (मानस, उत्तर ४४ । १) । शास्त्रविहित यज्ञ आदि कर्म करके ब्रह्मलोक आदि लोकोंकी प्राप्ति करना भी खास बात नहीं है; क्योंकि वहाँ जाकर फिर पीछे लौटकर आना ही पड़ता‒‘आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनः’ (गीता ८ । १६) । अतः प्राणीमात्रके हितकी भावना रखते हुए गृहस्थ-आश्रममें रहना चाहिये और अपनी शक्तिके अनुसार तन, मन, बुद्धि, योग्यता, अधिकार आदिके द्वारा दुसरोंको सुख पहुँचाना चाहिये । दूसरोंकी सुख-सुविधाके लिये अपने सुख-आरामका त्याग करना ही मनुष्यकी मनुष्यता है ।
प्रश्न‒गृहस्थमें काम-धंधा करते हुए जो हिंसा होती है, उससे छुटकारा कैसे हो ?
उत्तर‒गृहस्थमें ये पाँच हिंसाएँ होती हैं‒(१)जहाँ रसोई बनाती है, वहाँ आगमें चिंटी आदि छोटे-मोटे जीव मरते हैं, लकड़ियोंमें रहनेवाले जीव मरते हैं, आदि । (२) जहाँ जल रखते हैं, वहाँ घड़ा इधर-उधर करने आदिसे भी जीव मरते हैं । (३) झाड़ू लगाते समय बहुत-से जीव मरते हैं । (४) चक्कीमें अनाज पिसते समय भी बहुत-से जीव मरते हैं । (५) उखलमें चावल आदि कूटते समय भी जीव मरते हैं । इन हिंसाओंसे छूटनेके लिये गृहस्थको प्रतिदिन बलिवैश्वदेव, पंचमहायज्ञ करना चाहिये । जो सर्वथा भगवान्‌के ही शरण हो जाता है, उसको यह हिंसा नहीं लगती । वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है ।
प्रश्न‒हम चक्की नहीं चलाते, धान नहीं कूटते तो हमें हिंसा नहीं लगेगी ?
उत्तर‒आप पिसा हुआ आटा, कूटा हुआ धान अपने काममें लेतें हैं तो उस आटेको पीसनेमें, धानको कूटनेमें जो हिंसा हुई है, वह आपको लगेगी ही ।
प्रश्न‒खेतीमें अनेक जीवोंकी हिंसा होती है, तो क्या किसान खेती न करें ?
उत्तर‒खेती जरूर करे, खयाल रखे कि हिंसा न हो । किसानके लिये खेती करनेका विधान होनेसे उसको पाप कम लगता है, अतः उसको पापसे डरकर अपने कर्तव्यका त्याग नहीं करना चाहिये । हाँ, जहाँतक बने, हिंसा न हो, ऐसी सावधानी अवश्य रखनी चाहिये ।
प्रश्न‒आजकल किसानलोग फसलकी सुरक्षाके लिये जहरीली दवाएँ छिड़कते हैं तो क्या यह ठीक है ?
उत्तर‒किसानको यह काम कभी नहीं करना चाहिये । पहले लोग ऐसी हिंसा नहीं करते थे तो अनाज सस्ता मिलता था । आजकल हिंसा करते हैं तो अनाज महँगा मिलता है । दिखनेमें तो ऐसा दिखता है कि जीवोंको मार देनेसे अनाज अधिक होता है, पर इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा ।
  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे