।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
एकादशी-व्रत कल है
गृहस्थ-धर्म



(गत ब्लॉगसे आगेका)

 मनुष्य मोह-ममतामें फँस जाता है‒यही उसकी आध्यात्मिक उन्नतिमें बाधा है । उस बाधाको जो हटाते हैं, उनका तो उपकार ही मानना चाहिये कि ये हमें बाधारहित कर रहे हैं, हमारा कल्याण कर रहे हैं, उनकी हमपर बड़ी भारी कृपा है !

जीवनभर सेवा लेते रहनेसे वृद्धावस्थामें असमर्थताके कारण परिवारवालोंसे सेवा लेनेकी इच्छा ज्यादा हो जाती है । अतः मनुष्यको पहलेसे ही सावधान रहना चाहिये कि मैं सेवा लेनेके लिये यहाँ नहीं आया हूँ, मैं तो सबकी सेवा करनेके लिये ही आया हूँ; क्योंकि मनुष्य, देवता, ऋषि-मुनि, पितर, पशु-पक्षी, भगवान्‌ आदि सबकी सेवा करनेके लिये ही यह मनुष्य-शरीर है । अतः किसीसे भी सुख-सुविधा नहीं चाहनी चाहिये । अगर हम पहलेसे ही किसीसे सुख-सुविधा, सेवा नहीं चाहेंगे तो वृद्धावस्थामें सेवा न होनेपर भी दुःख नहीं होगा । हाँ, हमारे मनमें सेवा लेनेकी इच्छा न रहनेसे दूसरोंके मनमें हमारी सेवा करनेकी इच्छा जाग्रत् हो जायेगी !

हरेक क्षेत्रमें त्यागकी आवश्यकता है । त्यागसे तत्काल शान्ति मिलती है । प्रतिकूल परिस्थिति आनेपर भी प्रसन्न रहना बड़ा भारी तप है । अन्तःकरणकी शुद्धि तपसे होती है, सुख-सुविधासे नहीं । सुख-सुविधा चाहनेसे अन्तःकरण  अशुद्ध होता है । अतः मनुष्य सुख कभी चाहे ही नहीं, प्रत्युत अपने मन-वाणी-शरीरसे दूसरोंको सुख पहुँचाये ।

प्रश्न‒यदि परिवारमें कोई मर जाय तो मृतात्माकी शान्तिके लिये तथा अपना शोक दूर करनेके लिये क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒(१) मृतात्माके लिये विधिवत् नारायणबलि, श्राद्ध-तर्पण आदि करना चाहिये । (२) जब-जब उसकी याद आये, तब-तब उसको भगवान्‌के चरणोंमें देखना चाहिये । (३) उसके निमित्त गीता-पाठ, भागवत-सप्ताह श्रीरामचरितमानसका नवाहपारायण, नाम-जप, कीर्तन आदि करने चाहिये । (४) उसके निमित्त गरीब बालकोंको मिठाई बाँटनी चाहिये । मिठाई मिलनेसे बालक प्रसन्न हो जाते हैं । उनकी प्रसन्नतासे मृतात्माको भी शान्ति मिलती है और खुदको भी ।

सत्संग, कथा-कीर्तन, मन्दिर, तीर्थ आदिमें जानेके विषयमें शोक नहीं रखना चाहिये, प्रत्युत वहाँ जरूर जाना चाहिये । इनमें भी सत्संगकी विशेष महिमा है, क्योंकि सत्संगसे सब प्रकारका शोक दूर होता है ।

  (अपूर्ण)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे