।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७३, रविवार
पुत्रदा एकादशी-व्रत (सबका)
दहेज-प्रथासे हानि


(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक मार्मिक बात है कि जितना आप कमाते हो, उतना आप खर्च कर सकते ही नहीं ! आप जो संग्रह करते हो, वह सब आपके काम आयेगा ही नहीं; परन्तु जितना पाप हुआ है, वह सब आपके साथ चलेगा, कौड़ी एक पीछे रहेगा नहीं । यहाँ रहनेवाले धनके लिये साथमें जानेवाली पापकी पोटली बाँधनेवालेको बुद्धिमान् कहें तो फिर निर्बुद्धि किसको कहेंगे ? अब तो राजी होते हो, पर परिणाममें दुर्दशा होगी ! ‘पड़ेगा काम दूतों से, धरेगें मार जूतों से !’ इसलिये कृपा करके विचार कर लो कि इतना दिन हुआ सो हुआ, अब ऐसा काम नहीं करेंगे, किसीको दबाकर कभी कुछ नहीं लेंगे । किसीको दबाकर पैसे लेना, डाका डालना, चोरी करना बड़ा भारी पाप है । इस पापसे कब बचोगे ? वह कौन-सा दिन आयेगा, जब आप पापोंसे बचोगे ?

लड़केवाले दहेज माँगते हैं कि हम तो इतना लेंगे ! खुद लड़कीवाला बोल नहीं सकता । वह दूसरोंके द्वारा कहलवाता है कि हमारी यह कन्या है, लड़केवाले स्वीकार कर लें तो अच्छा है । लड़केवाले पूछते हैं कि रुपये कितने देगा ? वह कहता है कि दस हजार । तो वे कहते हैं कि दूसरा तीस हजार देता था, पर हमने नहीं लिये ! अब लड़का नीलाम हो रहा है ! पचास हजार कीमत हो गयी ! जो दे, वह पा ले । इस तरह लड़केका नीलाम करना क्या मनुष्यपना है ? थोड़ा-सा तो विचार करो । घरकी सन्तानका मोल करते हो कि जो ज्यादा रुपया देगा, उसको लड़का मिलेगा । अब लड़कीवाला इतने रुपये कहाँसे लाये ? वह बेचारा क्या करे ? यह आफत किसने की है ? धनियोंने । भूखे भी ज्यादा कौन हैं ? धनवाले । गरीब इतने भूखे नहीं हैं ? ‘को वा दरिद्रो हि विशालतृष्णः’ प्यास किसको ज्यादा है ? जो ज्यादा पानी पी ले, वह ज्यादा प्यासा है । ऐसे ही ज्यादा दरिद्री कौन है ? जो ज्यादा धनवान् है, वह ज्यादा दरिद्री है; क्योंकि उसकी भूख बहुत ज्यादा होती है । धनी आदमीको घाटा भी लाखों रुपयोंका होता है, जबकि गरीबको पीढ़ियोंसे कभी लाख रुपयोंका घाटा नहीं हुआ ! धनीलोग कहते हैं कि क्या करें, आजकल पैदा नहीं है; लगभग दस हजार किरायेका आ जाता है, इतना कुछ व्याज आ जाता है, इतना व्यापारमें आ जाता है; आजकल इतनी पैदा नहीं है ! तो कितने बड़े दरिद्री हैं वे कि इतनी पैदा उनको दीखती ही नहीं ! थोड़ी पैदा तो पैदा ही नहीं मानी जाती और घाटा लगता है लाखों रुपयोंका ! दान भी वे उतना नहीं कर सकते, जितना गरीब करता है । दस-बीस हजार रुपया दान कर दिया अथवा लाख रुपया दान कर दिया, पर पीछे कितना रुपया पड़ा है

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे