।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७३, सोमवार

स्वतन्त्रतादिवस
दहेज-प्रथासे हानि


(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक आदमीके पास पाँच रुपये हैं । कहीं भूखी गायोंके लिये देनेका काम पड़ जाय तो वह उन पाँच रुपयोंमेंसे एक रुपया सुखपूर्वक दे देगा । क्या ऐसे सुखपूर्वक सौ रुपयोंवाला बीस रुपये दे देगा ? हजार रुपयोंवाला दो सौ रुपये दे देगा ? लाख रुपयोंवाला बीस हजार रुपये दे देगा ? तंग करनेपर, दुःख देनेपर भी नहीं देगा, सुखपूर्वक तो क्या देगा वह ? पाँच रुपयोंवाला एक रुपया देता है तो उसके निर्वाहमें तंगी आ जायगी; परन्तु लाख रुपयोंवाला बीस हजार रुपये देता है तो उसके निर्वाहमें तंगी नहीं आयेगी; क्योंकि पीछे अस्सी हजार रुपये पड़े हैं । अतः गरीबके दानके समान धनीका दान नहीं हो सकता । भगवान्‌के यहाँ रुपयोंकी गिनती नहीं देखी जाती ।

सत्त सारु दत्त बाँटिये,  ‘नापो’ कहत नरां ।
निपट नकारो न दीजिये, उणत देख घरां ॥[*]

शक्तिके अनुसार दान करना चाहिये, तो क्या धनवान् शक्तिके अनुसार दान करते हैं ? लोग गिनती देखते हैं कि किसने ज्यादा दिया । वास्तवमें गिनतीमें जिसने ज्यादा दिया, वह दानी नहीं है । दानी वह है, जो साधारण स्थितिमें भी दान कर देता है । पासमें एक रोटी है और उसमेंसे आधी रोटी दे देता है, वह दानी है । पासमें बहुत पड़ा है, उसमेंसे लाख-दो-लाख दे दिया तो क्या दे दिया ? जितना छोटेका दान होता है, उतना बड़ेका दान नहीं होता । अन्याय भी बड़े आदमी ही करते हैं । बाजार-का-बाजार महँगा कर देते हैं । माल खरीदकर एक जगह कर लेते हैं, फिर महँगा करके बेचते हैं । अपने हाथमें सारा माल आ गया, अब वे चाहे जो करें । ऐसे-ऐसे अनर्थ करते हैं वे ! मैं आपको दुःखी करनेकी नीयतसे यह बात नहीं कहता हूँ, प्रत्युत सदाके लिये सुखी करनेकी नीयतसे, नरकोंके महान् दण्डसे बचानेके लिये यह बात कहता हूँ । यदि आप अन्यायपूर्वक धन न कमाओ, दूसरोंका दिल न दुखाओ तो आप सदाके लिये सुखी हो जाओगे ।

यह भ्रूणहत्या क्यों होती है ? इन धनी आदमियोंके कारणसे, क्योंकि दहेज ज्यादा माँगते हैं । बहनोंको मिठाई, फल आदि सामान ज्यादा चाहिये और भाइयोंको रुपये ज्यादा चाहिये । यह भूख बड़ी खराब है ! किसी तरहसे इस भूखको मिटाओ ! बहू मिठाई कम लाती है तो सास कहती है कि इतना-सा लायी है, मेरा बड़ा परिवार है, किस-किसको दें ! इस तरह वह बहू और उसकी माँकी निन्दा करती है । कोई दिन सासका है तो कोई दिन बहूका भी आयेगा, तब देखना तमाशा ! फिर कहेंगे कि बहू कहना नहीं मानती ।  

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान पुस्तकसे



[*] ‘नापो कवि कहते हैं कि मनुष्यो ! अपनी शक्तिके अनुसार दान दो । घरमें अभाव देखकर किसीको साफ ‘ना’ मत कहो, प्रत्युत कुछ-न-कुछ दो ।