।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
दहेज-प्रथासे हानि


(गत ब्लॉगसे आगेका)

आपने बहूका कितना आदर किया ? वह मिठाई ज्यादा लेकर आये‒इस लोभसे उसका कितना तिरस्कार किया ? अगर मिठाई कम है तो इसे लोगोंसे मत कहो । इसे छिपाओ, किसीके कानमें मत पड़ने दो और ठीक वैसी मिठाई घरमें बनाओ । फिर वह मिठाई मिलाकर सभीको बाँटो कि बेटेके ससुरालसे मिठाई आयी है । आप कहेंगे कि बाबाजी ! कहनेमें जोर नहीं आता; ऐसा करनेमें रुपये लगते हैं ! हम कहते हैं कि चालीस-पचास, सौ रुपये ही तो लगे, पर सौ रुपयोंमें बहू खरीदी गयी, बहू तुम्हारी हो गयी ! बहूपर इस बातका कितना असर पड़ेगा कि मेरी माँकी महिमाके लिये सासने मिठाई घरपर बनाकर बाँटी ! सौ रुपयोंमें एक आदमी खरीदा जाय तो सस्ता ही है, महँगा क्या है ? पर यह होगा लोभ छोड़नेसे । लोभ नरकोंका दरवाजा है (गीता १६ । २१), इसका त्याग करो । लोभमें महान् पाप है । लोभी आदमी अन्धा हो जाता है, देख नहीं सकता ।

लोभके कारण दहेज आदि देनेसे बचनेके लिये कन्याका गर्भ गिरा देना नारी-जातिका घोर अपमान है । कन्याका जन्म होता है तो बूढ़ी माताएँ कहती हैं‒‘भाटो (पत्थर) आयो है, भाटो’ ! अब, उनसे पूछो कि जब तुम आयी थी, तब रत्न आया था क्या ? तुम भी तो भाटो ही थी ! आज दादी-माँ बन गयी तो अब कन्याका तिरस्कार करती हो ! कन्याका दान होता है, उत्सव होता है । कन्यादानके दिन माता-पिता भूखे रहते हैं और कन्यादान (विवाह) होनेके बाद भोजन करते हैं । कन्यादान कोई मामूली दान नहीं है । इससे अगलेके वंशकी वृद्धिके लिये नींव डाल दी है । जिससे उसका वंश बड़े, ऐसी अपनी प्यारी पुत्री लक्ष्मीरूप कन्याको विष्णुरूप वरको देते हैं‒‘विष्णुरूपाय वराय सालङकारां सवस्त्रां लक्ष्मी- रूपिणीं कन्या सम्प्रददे’ ऐसी कन्याकी गर्भमें ही हत्या कर देना बड़ा भारी भयंकर पाप है । आपलोगोंसे यह प्रार्थना है कि गर्भमें चाहे कन्या हो, या लड़का हो, उसको गिराओ मत, उसकी हत्या मत करो । एक बात और ध्यान देकर सुनो । कन्या आयेगी तो अपना भाग्य लेकर आयेगी । वह आपके भाग्यके भरोसे नहीं आयेगी । ऐसी बात देखनेमें भी आती है । एकने मुझे बताया कि एक बार व्यापारमें ज्यादा रुपये पैदा हो गये । जब कन्याकी शादी की, तब आना-पाईसहित उतने रुपये लग गये ! अतः कन्याके भाग्यका अपने-आप आयेगा, आप घबराओ मत । पहले कठिनता दीखती है, पर समयपर ठीक तरहसे विवाह हो जाता है ।  

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान पुस्तकसे