।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
व्रत-पूर्णिमा
दहेज-प्रथासे हानि


(गत ब्लॉगसे आगेका)

            आप कन्याओंका गर्भ गिरा दोगे तो लड़कोंका विवाह कहाँ करोगे ? ब्राह्मणोंका ब्राह्मणोंमें, क्षत्रियोंका क्षत्रियोंमें अनादिकालसे विवाह होता आया है और लड़का-लड़की दोनों जन्मते आये हैं । कन्याएँ पैदा न हों तो वंश नष्ट हो जाय । राजपूतोंमें टीकेकी रीति (दहेज-प्रथा) ज्यादा होने लगी तो उन्होंने कन्याओंको मारना शुरू कर दिया । इस कारण उनके वंश नष्ट हो गये । भागवत आदिमें जितने राजपूतोंकी कथा आती है, उतने राजपूत आज देखनेमें नहीं आते । थोड़ा-सा विचार तो करो । कन्याकी हत्यासे बड़ा भारी अनर्थ होगा ! कन्याका जन्म रोकनेके लिये तो गर्भपात करते हो और विधवाओंका विवाह शुरू करना चाहते हो ! विधवाएँ तैयार हो जायँगी तो कन्याओंको वर कैसे मिलेंगे ? पहले ही कन्याओंका विवाह नहीं हो रहा है, फिर विधवाओंको और तैयार कर लिया ! विधवा-विवाह शास्त्रकी रीतिसे भी निषिद्ध है । पितृ-ऋणसे मुक्त होनेके लिये सन्तान पैदा करनेकी जिम्मेवारी पुरुषपर है । स्त्रीपर कोई जिम्मेवारी नहीं है । पुरुष भी यदि सुख-लोलुपतासे दूसरा विवाह करता है तो वह पाप करता है । जो बिना विवाह किये भोगोंका त्याग नहीं कर सकता, उसीके लिये विवाह करनेका विधान है । विवाह करना कोई बड़ा काम नहीं है । त्यागकी जितनी महिमा है, उतनी भोगोंकी महिमा कभी हुई नहीं, हो सकती नहीं, सम्भव ही नहीं है । फिर कहते हैं कि विधवाका विवाह होना चाहिये ! विधवाका विवाह हो सकता ही नहीं । विवाह संज्ञा ही उसकी होती है, जिसमें कन्यादान होता है । अब विधवाका दान कौन करे ? विधवा-विवाह वास्तवमें विवाह है ही नहीं । यह तो एक नाता है, जो कुत्ता-कुतियामें, गधा-गधीमें भी होता है ! यह कोई आदरकी, आदर्शकी बात थोड़े ही है ! परन्तु आज लोग कहते हैं कि विधवाओंका विवाह होना चाहिये । ऐसे ही साधु भी मिलकर कहेंगे कि साधुओंका भी विवाह होना चाहिये, तो क्या दशा होगी ! संयम रखनेकी कुछ तो जगह रखो । कृपा करके ठीक रास्तेपर आ जाओ ।

प्रश्न‒क्या दहेज लेना पाप है ?

उत्तर‒हाँ, पाप है ।

प्रश्न‒अगर पाप है तो फिर शास्त्रोंमें इसका विधान क्यों है ?

उत्तर‒शास्त्रोंमें केवल दहेज देनेका विधान है, लेनेका विधान नहीं है । दहेज लेना नहीं चाहिये और न लेनेकी ही महिमा है । कारण कि दहेज देना तो हाथकी बात है, पर दहेज लेना हाथकी बात नहीं है ।  

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान पुस्तकसे