।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
श्रावण अमावस्या, वि.सं.२०७३, मंगलवार
भौमवती अमावस्या
गृहस्थमें कैसे रहें ?




(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒घरमें चूहे, छिपकली, मच्छर, खटमल आदि जीवोंके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये ?

उत्तर‒घरमें रहनेवाले चूहे आदिको भी अपने घरका सदस्य मानना चाहिये; क्योंकि वे भी अपना घर बनाकर हमारे घरमें रहते हैं । अतः उनका भी हमारे घरमें रहनेका अधिकार है । तात्पर्य है कि अपनी रक्षा करते हुए जहाँतक बने, उनका भी पालन करना चाहिये । परन्तु आजकल लोग उनको मार देते हैं, यह ठीक नहीं है । मनुष्यको अपनी रक्षा करनेका ही अधिकार है, किसीको मारनेका अधिकार नहीं है । जैसे मनुष्य पृथ्वीपर अपना घर बनाकर रहता है, ऐसे ही चूहे आदि भी अपना घर बनाकर रहते हैं; अतः उनको मारना नहीं चाहिये । घरमें साँप, बिच्छू आदि जहरीले जीव हों तो उनको युक्तिसे पकड़कर घरसे दूर सुरक्षित स्थानपर छोड़ देना चाहिये ।

अपनी सफाई न रखनेसे, अशुद्धि रखनेसे ही मच्छर, खटमल आदि पैदा होते हैं । अतः घरमें पहलेसे ही स्वच्छता, निर्मलता रखनी चाहिये, जिससे वे पैदा हों ही नहीं । स्वच्छता रखते हुए भी वे पैदा हो जायँ तो भी उनको मारनेका हमें अधिकार नहीं है ।

प्रश्न‒घरमें कुत्ता पालना चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒घरमें कुत्ता नहीं रखना चाहिये । कुत्तेका पालन करनेवाला नरकोंमें जाता है । महाभारतमें आया है कि जब पाँचों पाण्डव और द्रौपदी वीरसंन्यास लेकर उत्तरकी ओर चले तो चलते-चलते भीमसेन आदि सभी गिर गये । अन्तमें जब युधिष्ठिर भी लड़खड़ा गये, तब इन्द्रकी आज्ञासे मातलि रथ लेकर वहाँ आया और युधिष्ठिरसे कहा कि आप इसी शरीरसे स्वर्ग पधारी । युधिष्ठिरने देखा कि एक कुत्ता उनके पास खड़ा है । उन्होंने कहा कि यह कुत्ता मेरी शरणमें आया है; अतः यह भी मेरे साथ स्वर्गमें चलेगा । इन्द्रने युधिष्ठिरसे कहा‒

स्वर्गे लोके श्ववतां नास्ति धिष्ण्यमिष्टापूर्तं क्रोधवशा हरन्ति ।
ततो विचार्य क्रियतां धर्मराज त्यज श्वानं नात्र नृशंसमस्ति ॥
                                                                     (महाभारत, महाप्र ३ । १०)

‘धर्मराज ! कुत्ता रखनेवालोंके लिये स्वर्गलोकमें स्थान नहीं है । उनके यज्ञ करने और कुआँ, बावड़ी आदि बनवानेका जो पुण्य होता है, उसे क्रोधवश नामक राक्षस हर लेते हैं । इसलिये सोच-विचारकर काम करो और इस कुत्तेको छोड़ दो । ऐसा करनेमें कोई निर्दयता नहीं है ।’

युधिष्ठिरने कहा कि मैंने इसका पालन नहीं किया है, यह तो मेरी शरणमें आया है । मैं इसको अपना आधा पुण्य देता हूँ, इसीसे यह मेरे साथ चलेगा । युधिष्ठिरके ऐसा कहनेपर उस कुत्तेमेंसे धर्मराज प्रकट हो गये और बोले कि मैंने तेरी परीक्षा ली थी । तुमने मेरेपर विजय कर ली, अब चलो स्वर्ग !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे