।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण द्वितीया, वि.सं.२०७३, शनिवार
बालक -सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒माता-पिताके आचरण तो अच्छे नहीं हैं, पर उनकी सन्तान अच्छी निकलती है‒इसका क्या कारण है ?

उत्तर‒प्रायः माँ-बापका स्वभाव ही सन्तानमें आता है पर ऋणानुबन्धसे अथवा गर्भाधानके समय कोई अच्छा संस्कार पड़नेसे अथवा गर्भावस्थामें किसी सन्त-महात्माका संग मिलनेसे श्रेष्ठ सन्तान पैदा हो जाती है । जैसे, हिरण्यकशिपुके यहाँ प्रह्लादजी पैदा हुए । प्रह्लादजीके विषयमें आता है कि तपस्यामें बाधा पड़नेसे हिरण्यकशिपु स्त्रीसे मिलनेके लिये घर आया तो गर्भाधानके समय बातचीतमें उसके मुखसे कई बार ‘विष्णु’ नामका उच्चारण हुआ । जब उसकी स्त्री कयाधू गर्भवती थी, तब गर्भस्थ बच्चेको लक्ष्य करके नारदजीने उसको भक्तिकी बातें सुनायीं । इन कारणोंसे प्रह्लादजीके भीतर भक्तिके संस्कार पड़ गये । जैसे जलका रस मधुर ही होता है, पर जमीनके संगसे जलका रस बदल जाता है, अलग-अलग हो जाता है (प्रत्येक कुएँका जल अलग-अलग होता है), ऐसे ही संगके कारण मनुष्यके भाव बदल जाते हैं ।

प्रश्न‒पिताकी आत्मा ही पुत्रके रूपमें आती है‒इसका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर‒जैसे कोई किसी ब्राह्मणको अपना कुलगुरु मानता है, कोई यज्ञोपवीत देनेवालेको गुरु मानता है; परन्तु उनका शरीर न रहे तो उनके पुत्रको गुरु माना जाता है और उनका जैसा आदर-सत्कार किया जाता था, वैसा ही उनके पुत्रका आदर-सत्कार किया जाता है[*] । जैसे पिता धनका मालिक होता है और पिता मर जाय तो पुत्र धनका मालिक बन जाता है । ऐसे ही पुत्र उत्पन्न होता है तो वह पिताका प्रतिनिधि होता है, पिताकी जगह काम करनेवाला होता है ।

यहाँ ‘आत्मा’ का अर्थ गौणात्मा है अर्थात् ‘आत्मा’ शब्द शरीरका वाचक है । शरीरसे शरीर (पुत्र) पैदा होता है; अतः व्यवहारमें पुत्र पिताका प्रतिनिधि होता है; परन्तु परमार्थ (कल्याण)-में पुत्र कोई कारण नहीं है ।

प्रश्न‒बालकोंको शिक्षा कैसे दी जाय, जिससे वे श्रेष्ठ बन जायें ?

उत्तर‒ बालक प्रायः देखकर ही सीखते हैं । इसलिये माता-पिताको चाहिये कि वे उनके सामने अपने आचरण अच्छे रखें, अपना जीवन संयमित और पवित्र रखें । ऐसा करनेसे बालक अच्छी बातें सीखेंगे और श्रेष्ठ बनेंगे । बालकोंकी उन्नतिके लिये एक नम्बरमें तो माता-पिता अपने आचरण अच्छे रखें और दो नम्बरमें उनको अच्छी बातें सुनायें, ऊँचे दर्जेकी शिक्षा दें, भक्तोंके और भगवान्‌के चरित्र सुनायें । अच्छी शिक्षा वह होती है, जिससे बालक व्यवहारमें परमार्थकी कला सीख जायँ । इस विषयमें थोड़ी बातें बतायी जाती हैं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[*] जब अर्जुन अश्वत्थामाको बाँधकर द्रौपदीके सामने लाते हैं, तब द्रौपदी अश्वत्थामाको छोड़ देनेका आग्रह करते हुए अर्जुनसे कहती है कि जिनकी कृपासे आपने सम्पूर्ण शस्त्रास्त्रोंका ज्ञान प्राप्त किया है, वे आपके आचार्य द्रोण ही पुत्र (अश्वत्थामा)-के रूपमें आपके सामने खड़े हैं‒‘स एष भगवान् द्रोणः प्रजारूपेण वर्तते’ । (श्रीमद्भा १ । ७ । ४५)