।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७३, रविवार
कज्जली तृतीया (बहुलाव्रत)
बालक -सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

माता-पिता कहीं बाहर जाना चाहते हैं तो वे बच्चोंसे कहते हैं कि ‘तुम यहीं रहो’ । ऐसा कहनेसे बच्चे मानते नहीं, जिद करते हैं, जिससे माता-पिताको भी विक्षेप हो जाता है और बच्चे भी दुःखी हो जाते हैं तथा घरमें अशान्ति हो जाती है । अतः बच्चोंको पहलेसे ही यह कह देना चाहिये कि ‘हम कहीं जायँ तो जिद मत किया करो; जैसा हम कहें, वैसा किया करो ।’ रोज दिनमें दो-तीन बार ऐसा कह देनेसे बच्चे इस बातको स्वीकार कर लेंगे । फिर कहीं जाते समय बच्चोंको कह दें कि ‘जिद नहीं करना; हम जैसा कहें, वैसा करना ।’ तो वे आपकी बात मान लेंगे ।

घरमें मिठाई आती है, फल आता है, अच्छा खाद्य पदार्थ आता है तो बच्चा उसको लेनेके लिये जिद करता है । अतः जिस समय खाद्य पदार्थ सामने न हो, उस समय दिनमें दो-तीन बार बच्चेसे कह देना चाहिये कि ‘कोई खानेकी चीज हो तो पहले दूसरेको देनी चाहिये, बची हुई खुद खानी चाहिये ।’ फिर बढ़िया चीज सामने आनेपर वह जिद करे तो उस समय उससे कहें कि ‘देखो बेटा ! जिद नहीं करना और दूसरोंको खिलाकर खाना‒बाँटकर खाना, वैकुण्ठमें जाना ।’ फिर वह जिद नहीं करेगा । इस तरह आप बच्चोंको जो-जो बातें सिखाना चाहते हैं, उन बातोंको दिनमें दो-तीन बार बच्चोंसे कह दिया करें और उनसे प्यारपूर्वक स्वीकार करा लिया करें । बच्चोंको अच्छी-अच्छी बातें सिखानी चाहिये; जैसे‒‘देखो बेटा ! कभी किसी चीजकी चोरी नहीं करना । माँसे माँगकर लेना, न दे तो रोकर लेना, पर चोरी नहीं करना । छोटे भाई-बहनोंसे प्यार करो । उनको खिलाओ, खेलाओ । जैसे भगवान् राम भरत आदिसे प्यार करते थे, प्यारसे समझाते थे, ऐसे ही तुम भी अपने भाई-बहनोंके साथ प्यारसे रहो, उनसे लड़ाई मत करो । आपसमें वाद-विवाद हो जाय तो उनकी बात मानो । अपनी बात मनानेकी जिद मत करो । माँ-बाप जैसा कहें, उसके अनुसार घरका काम-धंधा करो । समय फालतू मत खोओ, अच्छे काममें लगे रहो । दूसरोंका हक मत मारो । दूसरोंकी चीजको अपनी मत मानो । चीजोंको अच्छे-से-अच्छे काममें लगाओ, आदि-आदि ।’ इस तरह बच्चोंको जो- जो शिक्षा देनी हो, उसको रोज दो-तीन बार बच्चोंसे कह देना चाहिये । इससे उनके भीतर इन बातोंका असर हो जायगा ।

तात्पर्य है कि बालकोंको एक तो अच्छा आचरण करके दिखाना चाहिये और दूसरा, उनको अच्छी शिक्षा देनी चाहिये ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे