।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
श्रीचन्द्रषष्ठी-व्रत, हलषष्ठी (ललहीछठ)
बालक -सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒बच्चोंको ईसाई-स्कूलोंमें शिक्षा दिलानी चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒ईसाई-स्कूलोंमें बच्चोंको पढ़ाओगे तो वे घरमें रहते हुए भी ईसाई बन जायँगे अर्थात् आपके बच्चे ऊपरसे हिन्दू और भीतरसे ईसाई बन जायँगे । यह बड़ी शर्मकी बात है कि हजारों मील दूर रहनेवाले यहाँ आकर आपके बच्चोंको ईसाई बना लेते हैं और आप अपने घरके बच्चोंको भी हिन्दू बनाये नहीं रख सकते ! बच्चे आपके देशकी खास सम्पत्ति हैं, उनकी रक्षा करो ।

बड़े आदमियोंको चाहिये कि वे निजी स्कूल, कालेज बनायें, जिनमें अच्छा अनुशासन हो और बच्चोंको अच्छी शिक्षा देनेकी व्यवस्था हो । पढ़ानेवाले शिक्षकोंके आचरण भी अच्छे ही । यद्यपि अच्छे आचरणवाले शिक्षक मिलने कठिन हैं, तथापि उद्योग किया जाय तो मिल सकते हैं । ऐसे स्कूल-कॉलेजोंमें अपने धर्मकी और गीता, रामायण आदि ग्रन्थोंकी शिक्षा भी बच्चोंको दी जानी चाहिये । धार्मिक शिक्षाके लिये एक घण्टा तो अनिवार्य रखना ही चाहिये ।

आप स्वयं भी सादगी रखें और बच्चोंको भी सादगी सिखायें । आप स्वाद-शौकीनी, ऐश-आरामका त्याग करें और अच्छे-से-अच्छे काममें लगे रहें तो इसका बच्चोंपर भी अच्छा असर पड़ेगा । घरमें भगवान्‌का मन्दिर हो, भगवान्‌का पूजन हो । भगवान्‌का चरणामृत छोटे-बड़े सभी लें । घरमें भगवत्-सम्बन्धी चर्चा हो, भगवन्नाम-कीर्तन हो, अच्छे-अच्छे पदोंका गान हो । आप जितने अच्छे बनोगे, बच्चे भी उतने ही अच्छे बनेंगे । वचनोंकी अपेक्षा आचरणोंका असर ज्यादा पड़ता है ।

प्रश्न‒पुत्र-पुत्रीके विवाहके लिये माता-पिताको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒मुख्य बात तो यह है कि पुत्र और पुत्रीका जैसा भाग्य होगा, वैसा ही होगा । परन्तु माता-पिताका कर्तव्य है कि यदि पुत्रका विवाह करना हो तो लड़कीका स्वभाव देखना चाहिये; क्योंकि उम्रभर उससे काम पड़ेगा । उसके शरीरमें कोई भयंकर रोग न हो, उसकी माँका स्वभाव ठीक हो आदि जितनी जाँच कर सकें, करनी चाहिये । यदि कन्याका विवाह करना हो तो घर भी अच्छा हो, वर भी अच्छा हो, उसमें योग्यता भी हो आदि बातोंका विचार करके ही अपनी कन्या देनी चाहिये । शास्त्रमें वरके विषयमें सात बातें देखनेके लिये कहा गया है‒

कुलं च शीलं च वपुर्यशश्च विद्यां   च वित्तं च सनाथतां च ।
एतान्तुणान्सप्त परीक्ष्य देया कन्या बुधैः शेषमचिन्तनीयम् ॥

‘वरके कुल, शील, शरीर, यश, विद्या, धन और सनाथता (बड़े लोगोंका सहारा)‒इन सात गुणोंकी परीक्षा करके अपनी कन्या देनी चाहिये ।’

वास्तवमें वर अच्छा हो और वरकी माँ अच्छी हो तो वहाँ कन्या सुखसे रहती है । कन्याको एकदम नजदीक भी नहीं देना चाहिये और बहुत दूर भी नहीं देना चाहिये; क्योंकि नजदीक देनेसे खटपट ज्यादा हो सकती है[*] और दूर देनेसे कन्याका माँ-बापसे मिलना कठिन होता है । तात्पर्य है कि अपनी सन्तान सुख पाये, वह सुख-सुविधासे रहे, उसको किसी तरहका कष्ट न हो और वंशकी वृद्धि हो‒ऐसे भावसे सन्तानका विवाह करे ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[*] नजदीक होनेसे वह लड़की अपने प्रत्येक दुःखकी बात आकर अपनी माँसे कह देगी और माँ उस बातको सहन न करके लड़कीकी सास आदिसे कोई ऐसी बात कह देगी, जिससे लड़कीके ससुरालमें खटपट हो जायगी । लड़कीको भी चाहिये कि वह अपने दुःखकी बात किसीसे भी न कहे, प्रत्युत घरकी बात घरमें ही रखे, नहीं तो उसकी अपनी ही बेइज्जती होगी, उसपर ही आफत आयेगी; जहाँ उसको रात-दिन रहना है, वहीं अशान्ति हो जायगी ।