।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
श्रीकृष्णजन्माष्टमी-व्रत
गीतामें श्रीकृष्णकी भगवत्ता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

भगवान् कहते हैं कि मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें व्याप्त हूँ और सम्पूर्ण प्राणी मेरेमें स्थित हैं तथा मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें नहीं हूँ और सम्पूर्ण प्राणी मेरेमें नहीं हैं, अर्थात् सब कुछ मैं-ही-मैं हूँ (९ । ४-५)‒यह विद्या (राजविद्या) है । आसुर भाववाले मूढ़ मनुष्य मेरे शरण नहीं होते (७ । १५)‒यह अविद्या है । इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण विद्या और अविद्याको जानते हैं ।

इस प्रकार सम्पूर्ण प्राणियोंके उत्पत्ति-प्रलय, आवागमन और विद्या-अविद्याको जाननेके कारण श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान् हैं‒यह सिद्ध होता है ।

मनुष्य अच्छे कर्म करके, साधन करके ऊँची स्थितिको प्राप्त हो जाता है तो लोग उसको महापुरुष कहने लग जाते हैं । जो लोग यह मानते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण भी एक महापुरुष थे, उनका यह मानना बिलकुल गलत है । भगवान् श्रीकृष्ण अवतार थे । जो साधन करके ऊँचा उठता है, उसका नाम ‘उत्तार’ है, अवतार नहीं । अवतार नाम उसका है, जो अपनी स्थितिमें स्थित रहते हुए ही किसी विशेष कार्यको करनेके लिये नीचे उतरता है अर्थात् मनुष्य आदिके रूपमें प्रकट होता है । जैसे, कोई आचार्य किसी बच्चेको वर्णमाला सिखाता है तो वह ‘अ, , , ' आदि स्वरोंका और ‘क, , , ध’ आदि व्यञ्जनोंका स्वयं उच्चारण करता है और उस बच्चेसे भी उनका उच्चारण करवाता है और उसका हाथ पकड़कर उससे लिखवाता है । इस प्रकार उस बच्चेको वर्णमाला सिखानेके लिये स्वयं भी बार-बार वर्णमालाका उच्चारण करना और उसको लिखना‒यह उस आचार्यका बच्चेकी श्रेणीमें अवतार लेना है, उसकी श्रेणीमें आना है । बच्चेकी श्रेणीमें आनेपर भी उसकी विद्वता वैसी-की-वैसी ही बनी रहती है । ऐसे ही सन्तोंकी रक्षा, दुष्टोंका विनाश और धर्मकी स्थापना करनेके लिये भगवान् अज (अजन्मा) रहते हुए ही जन्म लेते हैं, अविनाशी रहते हुए ही अन्तर्धान हो जाते हैं और सम्पूर्ण प्राणियोंके ईश्वर (मालिक) रहते हुए ही माता-पिताके आज्ञापालक बन जाते हैं (४ । ६) । अवतार लेनेपर भी उनके अज, अविनाशी और ईश्वरपनेमें कुछ भी कमी नहीं आती, वे ज्यों-कें-त्यों ही बने रहते हैं ।

 जो लोग यह मानते है कि भगवान् श्रीकृष्ण एक योगी थे, भगवान् नहीं थे उनका यह मानना बिलकुल गलत है । योगी वही होता है, जिसमें योग होता है । योगके आठ अंग हैं, जिनमें सबसे पहले ‘यम’ आता है । यम पाँच हैं‒अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । अतः जो योगी होगा, वह सत्य ही बोलेगा । अगर वह असत्य बोलता है तो वह योगी नहीं हो सकता; क्योंकि उसने योगके पहले अंग-(यम-) का भी पालन नहीं किया ! अतः भगवान् श्रीकृष्णको योगी माननेसे उनको भगवान् भी मानना ही पड़ेगा; क्योंकि गीतामें भगवान् श्रीकृष्णने जगह-जगह अपने-आपको भगवान् कहा है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे