।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, बुधवार
गृहस्थमें कैसे रहें ?




(गत ब्लॉगसे आगेका)

तात्पर्य है कि गृहस्थको घरमें कुत्ता नहीं रखना चाहिये । महाभारतमें आया है‒

भिन्नभाण्डं च खट्‌वां च  कुक्कुटं शुनकं तथा ।
अप्रशस्तानि सर्वाणि     यश्च  वृक्षो गृहेरुहः ॥
भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः ।
कुक्कुटे शुनके   चैव   हविर्नाश्नन्ति   देवताः ।
वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं   तस्माद् वृक्ष न रोपयेत् ॥
                              (महाभारत, अनु १२७ । १५-१६)

‘घरमें फूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्षका होना अच्छा नहीं माना गया है । फूटे बर्तनमें कलियुगका वास कहा गया है । टूटी खाट रहनेसे धनकी हानि होती है । मुर्गे और कुत्तेके रहनेपर देवता उस घरमें हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकानके अन्दर कोई बड़ा वृक्ष होनेपर उसकी जड़के भीतर साँप, बिच्छू आदि जन्तुओंका रहना अनिवार्य हो जाता है, इसलिये घरके भीतर पेड़ न लगाये ।’

कुत्ता महान् अशुद्ध, अपवित्र होता है । उसके खान-पानसे, स्पर्शसे, उसके जगह-जगह बैठनेसे गृहस्थके खान-पानमें, रहन-सहनमें अशुद्धि, अपवित्रता आती है और अपवित्रताका फल भी अपवित्र (नरक आदि) ही होता है ।

प्रश्न‒खेत आदिकी रक्षाके लिये कुत्ता रखा जाय तो क्या हानि है ?

उत्तर‒कुत्तेको केवल खेत आदिकी रक्षाके लिये ही रखे । समय-समयपर उसको रोटी दे, पर अपनेसे उसको दूर ही रखे । उसको अपने साथ रखना, अपने साथ घुमाना, मर्यादारहित छूआछूत करना ही निषिद्ध है । तात्पर्य है कि कुत्तेका पालन करना, उसकी रक्षा करना दोष नहीं है, प्रत्युत प्राणिमात्रका पालन करना तो गृहस्थका खास कर्तव्य है । परन्तु कुत्तेके साथ घुल-मिलकर रहना, उसको साथमें रखना, उसमें आसक्ति रखना पतनका कारण है क्योंकि अन्त समयमें यदि कुत्तेका स्मरण हो जायगा तो अगले जन्ममें कुत्ता ही बनना पड़ेगा[*]

प्रश्न‒घरकी छतपर या दीवारपर पीपल लग जाय तो उसको हटाना चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒उसको उखाड़कर चौराहेमें या मन्दिरके सामने अथवा गलीमें अच्छी जगह लगा देना चाहिये और उसको जल देते रहना चाहिये । छत या दीवार तोड़नी पड़े तो कोई बात नहीं, उसकी फिर मरम्मत करा लेनी चाहिये, पर जहाँतक बन सके, पीपलको काटना नहीं चाहिये । पीपल, वट, पाकर, गूलर, आँवला, तुलसी आदि पवित्र वृक्षोंका विशेष आदर करना चाहिये, जो मनुष्योंको पवित्र करनेवाले हैं ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[*] यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
    तं तमेवैति कौन्तेय  सदा  तद्भावभावितः ॥
                                                 (गीता ८ । ६)

‘हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! मनुष्य अन्तकालमें जिस-जिस भी भावका स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है, वह उसी भावसे सदा भावित होता हुआ उस-उसको ही प्राप्त होता है अर्थात् उस-उस योनिमें ही चला जाता है ।’