।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
गृहस्थोंके लिये



(गत ब्लॉगसे आगेका)
भोग-विलासकी चीजोंको मनुष्यने अपनी आवश्यक चीजें बना लिया है । वह उन चीजोंके इतने अधीन हो गया है कि उनके बिना उसको अपना जीवन भी भारी लगने लगा है, जिसका कारण आलस्य, प्रमाद और आरामतलबी है । जब उसके लिये अपनी जरूरतोंको पूरा करना भी कठिन हो गया है, तो फिर वह अपनी संतानकी जरूरतोंको कहाँतक पूरा करे ! अतः उसने संतति-निरोधके उपायोंको काममें लाना शुरू कर दिया है । उसमें काम-वासना भी इतनी बढ़ गयी है कि उसने स्त्रीको मात्र भोग-सामग्री बनाना तो ठीक समझा है, पर भोगके प्राकृतिक परिणाम-संतानका होना ठीक नहीं समझा है । वह यह विचार तो करता है कि संतान न होनेसे स्त्री अधिक समयतक युवा बनी रहेगी, हमारे भोगके योग्य बनी रहेगी, पर यह विचार नहीं करता कि लाख कोशिश करनेपर भी जवानीके बाद बुढ़ापा आयेगा ही और बुढ़ापेके बाद मौत आयेगी ही, जो कि अनिवार्य है । उसके हृदयमें न तो ईश्वरका विश्वास रहा है, न अपने भाग्यका विश्वास रहा है और न अपने पुरुषार्थ- (कर्तव्य-) पर ही विश्वास रहा है । तात्पर्य है कि ईश्वर सबका पालन करनेवाला है, हरेक व्यक्ति अपने भाग्यके अनुसार पाता है और अपने पुरुषार्थ-(उद्योग-) से मैं कमा सकता हूँ और अपने परिवारका पालन-पोषण कर सकता हूँ‒इन बातोंपरसे मनुष्यका विश्वास हट गया है । इन सब कारणोंसे परिवार-नियोजन-कार्यक्रमका तेजीसे प्रचार एवं प्रसार हुआ और हो रहा है ।

क्या परिवार-नियोजन आवश्यक है ?


जनसंख्या-वृद्धिसे होनेवाली जिन हानियोंका प्रचार किया जा रहा है, वह केवल कपोल-कल्पना है, उसमें वास्तविकताकी बात ही नहीं है । परिवार-नियोजनके समर्थक कहते हैं कि जनसंख्या बढ़नेपर अन्नकी कमी हो जायगी, जिससे सबको भरपेट अन्न नहीं मिल सकेगा । यह बात तो तभी लागू पड़ती है, जब अन्न एक निश्चित मात्रामें जमा रखा गया हो और आगे अन्न पैदा होनेकी गुंजाइश न हो । जनसंख्याकी वृद्धिको लेकर अन्नकी चिन्ता करनेवाले लोग यह भूल जाते हैं कि जनसंख्या बढ़नेसे केवल खानेवाले ही नहीं बढ़ते, प्रत्युत पैदा करनेवाले (कमानेवाले) भी बढ़ते हैं । प्रत्येक व्यक्तिके पास केवल पेट ही नहीं होता, प्रत्युत दो हाथ, दो पैर और एक मस्तिष्क भी होता है, जिनसे वह केवल अपना ही नहीं, प्रत्युत कई प्राणियोंका भरण-पोषण कर सकता है । 

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे