।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
अनन्तचतुर्दशी-व्रत
गृहस्थोंके लिये


(गत ब्लॉगसे आगेका)

वास्तवमें अन्नादि वस्तुओंकी कमी तभी आ सकती है, जब मनुष्य काम न करें और भोगी, ऐयाश, आरामतलब हो जायँ । आवश्यकता ही आविष्कारकी जननी है । अतः जब जनसंख्या बढ़ेगी, तब उसके पालन-पोषणके साधन भी बढ़ेंगे, अन्नकी पैदावार भी बढ़ेगी, वस्तुओंका उत्पादन भी बढ़ेगा, उद्योग भी बढ़ेंगे । जहाँतक हमें ज्ञात हुआ है, पृथ्वीमें कुल सत्तर प्रतिशत खेतीकी जमीन है, जिसमें केवल दस प्रतिशत भागमें ही खेती हो रही है, जिसका कारण खेती करनेवालोंकी कमी है ! अतः जनसँख्याकी वृद्धि होनेपर अन्नकी कमीका प्रश्न ही पैदा नहीं होता । यदि भूतकालको देखें तो पता लगता है कि जनसंख्यामें जितनी वृद्धि हुई है, उससे कहीं अधिक अन्नके उत्पादनमें वृद्धि हुई है । इसलिये जे डी बर्नेल आदि विशेषज्ञोंका कहना है कि जनसंख्यामें वृद्धि होनेपर भी आगामी सौ वर्षोंतक अन्नकी कमीकी कोई सम्भावना मौजूद नहीं है । प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कोलिन क्लार्कने तो यहाँतक कहा है कि ‘अगर खेतीकी जमीनका ठीक-ठीक उपयोग किया जाय तो वर्तमान जनसंख्यासे दस गुनी ज्यादा जनसंख्या बढ़नेपर भी अन्नकी कोई समस्या पैदा नहीं होगी’ (पापुलेशन ग्रोथ एण्ड लिविंग स्टैण्डर्ड) ।

सन् १८८० में जर्मनीमें जीवन-निर्वाहके साधनोंकी बहुत कमी थी, पर उसके बाद चौंतीस वर्षोंके भीतर जब जर्मनीकी जनसंख्या बहुत बढ़ गयी, तब जीवन-निर्वाहके साधन और कम होनेकी अपेक्षा इतने अधिक बढ़ गये कि उसको काम करनेके लिये बाहरसे आदमी बुलाने पड़े ! इंग्लैंडकी जनसंख्यामें तीव्रगतिसे वृद्धि होनेपर भी वहाँ जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कोई कमी नहीं आयी । यह प्रत्यक्ष बात है कि संसारमें कुल जनसंख्या जितनी बढ़ी है, उससे कहीं अधिक जीवन-निर्वाहके साधन बढ़े हैं ।

परिवार-नियोजनके समर्थनमें एक बात यह भी कही जाती है कि जनसंख्या बढ़नेपर लोगोंको रहनेके लिये जगह मिलनी कठिन हो जायगी । विचार करें, यह सृष्टि करोड़ों-अरबों वषोंसे चली आ रही है, पर कभी किसीने यह नहीं देखा, पढ़ा या सुना होगा कि किसी समय जनसंख्या बढ़नेसे लोगोंको पृथ्वीपर रहनेकी जगह नहीं मिली ! जनसंख्याको नियन्त्रित रखना और उसके जीवन-निर्वाहका प्रबन्ध करना मनुष्यके हाथमें नहीं है, प्रत्युत सृष्टिकी रचना करनेवाले भगवान्‌के हाथमें है । भगवान् कहते हैं‒

गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
                                                                    (गीता १५ । १३)

मैं ही पृथ्वीमें प्रविष्ट होकर अपनी शक्तिसे समस्त प्राणियोंको धारण करता हूँ ।

यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥
                                            (गीता १५ । १७)
‘वह अविनाशी ईश्वर तीनों लोकोंमें प्रविष्ट होकर सबका भरण-पोषण करता है ।’

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे