।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद पूर्णिमा, वि.सं.२०७३, शुक्रवार

पूर्णिमा, महालायारम्भ
गृहस्थोंके लिये


(गत ब्लॉगसे आगेका)

ब्रिटिश एसोसिएशनके अध्यक्ष सर विलियम क्रोक्सने भी सन् १८९८ में आजकी तरह यह चेतावनी दी थी कि ‘जनसंख्या-वृद्धिके कारण पृथ्वीमें जीवन-निर्वाहके साधन आगामी तीस वर्षोंसे अधिक हमारी आवश्यकताओंकी पूर्ति नहीं कर सकेंगे । अतः इंग्लैंड आदि देशोंको शीघ्र ही अकालका सामना करना पड़ सकता है !’ परंतु आगामी तीस वर्षोंमें अकाल पड़ना तो दूर रहा, अन्नकी इतनी अधिक पैदावार हुई कि उसके भावोंमें अत्यधिक मन्दी आ गयी, जिसके कारण अमेरिका आदि कुछ देशोंको अपना अधिक गेहूँ जलाकर अथवा समुद्रमें डालकर नष्ट कर देना पड़ा !

वर्तमानमें करोड़ों एकड़ जमीन खाली पड़ी है । अतः जनसंख्या-वृद्धिको लेकर यह हल्ला करना व्यर्थ है कि भविष्यमें लोगोंको खानेके लिये अन्न और रहनेके लिये जगह नहीं मिलेगी । भारतकी तो प्राकृतिक सम्पत्ति इतनी है कि वर्तमान जनसंख्यासे दुगुनी अधिक जनसंख्या हो जाय तो भी सबका जीवन-निर्वाह हो सकता है । भारतकी प्राकृतिक सम्पत्ति संसारमें सबसे अधिक है । जितनी चीजें यहाँ पैदा होती हैं, उतनी अन्य किसी भी देशमें पैदा नहीं होतीं । अगर जनसंख्या कम हो जायगी तो उनका उत्पादन कौन करेगा ? कारण कि जनसंख्यामें कमी होनेसे अन्न आदिका उत्पादन करनेवाले कुशल व्यक्तियोंका, उत्पादन करनेकी शक्तियोंका और उत्पादन करनेके साधनोंका भी अभाव हो जाता है ।

यदि सरकार जनसंख्या-वृद्धिको एक समस्या मानती है तो इसका उचित और वास्तविक समाधान यही है कि जीवन-निर्वाहके साधनोंमें वृद्धि की जाय, नये-नये साधनोंकी खोज की जाय । जिन देशोंने इस समाधानको अपनाया है, उनके जीवन-निर्वाहके साधनोंमें जनसंख्या-वृद्धिकी अपेक्षा भी बहुत अधिक वृद्धि हुई है । कारण कि वास्तवमें जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी होनेका सम्बन्ध जनसंख्या-वृद्धिके साथ है ही नहीं । जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी तब आती है, जब मनुष्य आलसी, प्रमादी, भोगी और अकर्मण्य बननेके कारण अपनी जिम्मेवारीका काम नहीं करते । वे खर्चा तो अधिक करते हैं, पर काम कम करते हैं, जो कि देशको दरिद्र बनानेवाली चीज है ।


देशकी समस्याओंके समाधानके लिये परिवार-नियोजन-कार्यक्रमको अपनाना वास्तवमें अपनी पराजय स्वीकार करना है । इससे यह सिद्ध होता है कि मनुष्य इतना आलसी और अकर्मण्य हो गया है कि वह अपनी आवश्यकताओंके अनुसार जीवन-निर्वाहके साधनोंमें वृद्धि न करके खुदको ही समाप्त कर देना ठीक समझता है ! जैसे, शरीरपर कोई कपड़ा ठीक न आये तो कपड़ेका आकार ठीक करनेकी अपेक्षा शरीरको ही काटकर छोटा करनेका प्रयत्न किया जाय ! कपड़ा मनुष्यके लिये है, मनुष्य कपड़ेके लिये नहीं । अगर मनुष्य कपड़ेके लिये हो जायगा तो फिर मनुष्यमें मनुष्यता रहेगी ही नहीं ।

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे