।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, शनिवार
श्रीविश्वकर्मापूजा, प्रतिपदा श्राद्ध
गृहस्थोंके लिये


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कोलिन क्लार्कने लिखा है कि ‘आर्थिक सलाहकारोंका काम यह बताना है कि अर्थ-व्यवस्थाको जनसंख्याके अनुसार कैसे ठीक किया जाय, न कि यह बताना कि जनसंख्याको अर्थ-व्यवस्थाके अनुसार कैसे ठीक किया जाय । किसी भी अर्थशास्त्रीको, चाहे वह कितना ही बड़ा विद्वान् हो और किसी भी सरकारको, चाहे वह कितनी ही शक्तिशाली हो, यह अधिकार नहीं है कि वह माँ-बापसे संतान कम पैदा करनेके लिये अथवा पैदा न करनेके लिये कहे । परंतु हर माँ-बापको यह अधिकार अवश्य है कि वे अर्थशास्त्रियोंसे और सरकारसे यह माँग करें कि वे अर्थ-व्यवस्थाको इतना सुदृढ़ बनायें कि उनके परिवारकी जीवन-निर्वाह-सम्बन्धी आवश्यकताएँ पूरी हो सकें ।’

एक आदमीके शरीरसे एक बार स्त्रीसंगके समय जितना वीर्य निकलता है, उससे करोड़ों बच्चे पैदा हो सकते हैं ! कारण कि उसमें लगभग पचीससे पचास करोड़तक शुक्राणु विद्यमान रहते हैं, जिनमेंसे प्रत्येक शुक्राणुमें एक मनुष्य बननेकी पूरी क्षमता होती है । परंतु उनमेंसे कोई एक ही शुक्राणु स्त्रीके रजसे मिलकर मनुष्य बन पाता है । मनुष्यकी इस संतानोत्पादक शक्तिको किसी देशकी सरकारने अथवा खुद मनुष्यने सीमित नहीं किया है, प्रत्युत उसने सीमित किया है, जो इस सम्पूर्ण संसारका रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता है[1] । जनसंख्याके नियोजनका, उसको बढाने-घटानेका कार्य उसके विभागमें है, सरकारके विभागमें नहीं । तात्पर्य है कि सरकारका अधिकार जनसंख्याको सीमित करना नहीं है, प्रत्युत जितनी जनसंख्या है, उसके जीवन-निर्वाहका, उसकी सुरक्षाका भलीभाँति प्रबन्ध करना है । यदि जनसंख्या और जीवन-निर्वाहके साधनोंके बीच संतुलनको ठीक रखनेका प्रयत्न किया जायगा तो संतुलन ठीक होनेकी अपेक्षा और बिगड़ जायगा । कारण कि जीवन-निर्वाहके साधन मनुष्योंके लिये हैं, न कि मनुष्य उनके लिये । मनुष्योंको कम करके अन्नको अधिक पैदा करनेकी चेष्टा वैसी ही है, जैसी चेष्टा संतानको गर्भमें न आने देकर माँका दूध अधिक प्राप्त करनेकी है ! जहाँ वृक्ष अधिक होते हैं, वहाँ वर्षा अधिक होती है, फिर मनुष्य अधिक होंगे तो क्या अन्न अधिक नहीं होगा ? यह प्रत्यक्ष बात है कि जब देशमें परिवार-नियोजन-कार्यक्रमका आरम्भ नहीं हुआ था, तब अन्न जितना सस्ता था, उतना आज नहीं है ।

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे

[1] गीतामें भगवान् कहते है‒‘धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ’ (७ । ११) ‘मनुष्योंमें धर्मसे अविरुद्ध अर्थात् धर्मयुक्त काम मैं हूँ’; ‘प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः’ (१० । २८) ‘संतानोत्पत्तिका हेतु काम मैं हूँ ।’