।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७३, सोमवार
तृतीया श्राद्ध
गृहस्थोंके लिये


(गत ब्लॉगसे आगेका)

परिवार-नियोजन-कार्यक्रम अपनानेसे समाजमें बच्चों तथा जवानोंकी संख्या कम हो जाती है और बूढ़ोंकी संख्या अधिक हो जाती है, जिसके कारण देशकी आर्थिक उन्नति रुक जाती है और वह विभिन्न दृष्टियोंसे काफी पिछड़ जाता है । बच्चों और बूढ़ोंका अनुपात बिगड़नेसे देशकी सारी व्यवस्था डाँवाडोल हो जाती है । लार्ड कीन्स और प्रो हेन्सनके मतानुसार ‘जनसंख्याकी वृद्धिसे आर्थिक तेजी आती है । बेरोजगारीकी वृद्धिका कारण जनसंख्याकी कमी है ।’ कोलन क्लार्कने लिखा है कि अगर जनसंख्यामें वृद्धि हो और बाजारका आकार बढ़ जाय तो प्रति व्यक्ति उत्पादन बढ़ जायगा, कम नहीं होगा । अगर अमेरिका और पश्चिमी यूरोपमें अधिक जनसंख्या न होती तो कई वर्तमान उद्योग संकटमें पड़ जाते और उनका उत्पादन-व्यय भी बहुत बढ़ जाता ।’

सन्तति-निरोधके उपायोंके व्यापक प्रचार एवं प्रसारसे भोगेच्छा बहुत बढ़ जाती है । भोगेच्छा बढ़नेसे उनका प्रयोग विवाहित स्त्री-पुरुषोंतक ही सीमित नहीं रहता, प्रत्युत अविवाहित लड़के-लड़कियाँ भी उनका प्रयोग आरम्भ कर देते हैं, जिससे समाजमें व्यभिचार बढ़ जाता है और समाजकी मर्यादा भंग हो जाती है । मर्यादा भंग होनेसे मनुष्य पशुओंकी तरह हो जाता है । फिर कन्याएँ भी गर्भवती होने लगती हैं और विधवाएँ भी गर्भवती होने लगती हैं; क्योंकि उनको गर्भ रोकने अथवा गिरानेका उपाय मिल जाता है । व्यभिचार बढ़नेसे सुजाक, उपदंश, एड्‌स आदि भयंकर रोगोंकी भी वृद्धि हो जाती है । लोगोंका चरित्र गिरनेसे देशका घोर नैतिक पतन हो जाता है । परिवार-नियोजन-कार्यक्रमका यह दुष्परिणाम पश्चिमी देशोंमें प्रत्यक्ष रूपसे देखनेमें आ रहा है । वहाँ यौन-अपराधोंमें अत्यधिक वृद्धि हुई है और बीस वर्षसे भी कम उम्रवाले लड़के-लड़कियोंमें सुजाक, उपदंश आदि गुप्तरोग तेजीसे फैल रहे हैं ।

विदेशोंमें पति-पत्नीके सम्बन्धोंमें शिथिलता और तलाककी अधिकता पाये जानेके कारणोंमें सन्तति-निरोध भी एक कारण है । अधिकतर वे ही पति-पत्नी तलाक लेते हैं, जिनकी कोई सन्तान नहीं है अथवा जिनकी बहुत कम सन्तान है । कारण कि सन्तान पैदा होनेसे पति-पत्नीका सम्बन्ध दृढ़ होता है और वे माँ-बापके रूपमें एक श्रेष्ठ पदको प्राप्त करते हैं । परन्तु सन्तति-निरोधसे पति-पत्नीका सम्बन्ध शिथिल होकर केवल काम-वासनाकी पूर्तिके लिये सीमित हो जाता है । स्त्रीको माँका ऊँचा दर्जा प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत वह पुरुषके लिये भोग्या बनकर रह जाती है, जो कि उसके पतनका चिह्न है । जब पति-पत्नीके सम्बन्ध शिथिल हो जाते हैं, तब समाजमें तलाक, व्यभिचार आदि दोषोंकी अधिकता हो जाती है, जिसका परिणाम भयंकर दुःख होता है ।

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे