।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
चतुर्थी श्राद्ध
गृहस्थोंके लिये


(गत ब्लॉगसे आगेका)

स्त्रीका आदर माँ बननेसे ही होगा, भोग्या बननेसे नहीं । भोग्या बननेपर जब वह भोगके योग्य नहीं रहेगी, तब उसका निर्वाह कौन करेगा ? उलटे उसका तिरस्कार होगा । पति तलाक दे दे और बेटे हों नहीं, तो फिर उसका पालन कौन करेगा ? सन्तान नहीं होगी तो बूढी स्त्री और बीमार स्त्रीकी सेवा कौन करेगा ? कारण कि माँको कष्ट न हो, उसकी सेवा बन जाय‒यह भाव जितना बेटे-पोतोंमें होता है, उतना दूसरोंमें नहीं होता ।

जब मनुष्योंकी बुद्धिमें यह स्वार्थभाव पैदा हो जायगा कि बच्चे कम पैदा होनेसे हम सुखी रहेंगे, हमारा जीवन-स्तर अच्छा रहेगा, तब यह भाव बच्चे कम पैदा करनेतक ही सीमित नहीं रहेगा । उनको अपनी स्वार्थसिद्धिमें केवल अपनी सन्तान ही बाधक नहीं दीखेगी, प्रत्युत बूढ़े माँ-बाप भी बाधक दीखने लगेंगे, अपने भाई-बहन भी बाधक दीखने लगेंगे, परिवारके रोगी, अपाहिज, असमर्थ और निर्धन व्यक्ति भी बाधक दीखने लगेंगे ! पश्चिम देशोंमें यही दशा देखनेमें आ रही है । जो अपनी सन्तानका ही पालन-पोषण करनेके लिये तैयार न हो, वह दूसरोंका पालन-पोषण कैसे करेगा ? अतः सन्तति-निरोधके प्रचार-प्रसारसे मनुष्योंमें सेवा, त्याग, प्रेम, परहित आदिकी भावनाएँ नष्ट हो जायँगी और वे पहलेसे अधिक स्वार्थी बन जायँगे ।

प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने परिवारको, अपनी परिस्थितिको, अपने स्वार्थको देखकर सन्तति-निरोध करता है, न कि देशको देखकर । देशको अपनी शक्ति बनाये रखनेके लिये कम-से-कम कितनी जनसंख्याकी जरूरत है, यह बात व्यक्तिकी दृष्टिमें नहीं रहती । जो स्त्री-पुरुष केवल एक या दो सन्तान पैदा करेंगे, वे अपनी सन्तानसे प्रायः यही आशा रखेंगे कि वह हमारे पास रहकर हमारी सेवा करे, हमारे स्वार्थोंको पूरा करे, हमारी आवश्यकताओंकी पूर्ति करे[*] । हमारी सन्तान देशकी अद्वि सेवा करे, सेनामें भरती होकर देशकी शत्रुओंसे रक्षा करे‒यह भाव प्रायः उन्हीं माता-पिताके मनमें आयेगा, जिनकी अधिक सन्तान हैं । अगर एक-दो सन्तान होगी तो घरका काम ही पूरा नहीं होगा, फिर कौन फौजमें भरती होगा ? कौन साधु बनेगा ? कौन शास्त्रोंका विद्वान् बनेगा ? कौन व्याख्यानदाता बनेगा ? ज्यादा सन्तान होगी तो कोई फौजमें चला जायगा, कोई खेती करेगा, कोई व्यापार करेगा, कोई फैक्ट्री लगायेगा ।

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे


[*] मातु पिता बालकन्हि बोलावहिं ।
                 उदर  भरै सोइ   धर्म  सिखावहिं ॥ (मानस, उत्तर ९९ । ४)