।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७३, गुरुवार

सप्तमी श्राद्ध
गृहस्थोंके लिये


(गत ब्लॉगसे आगेका)

राजनीतिक दृष्टिसे देखा जाय तो जनसंख्या-वृद्धिका बहुत महत्त्व है । जनसंख्याकी कमी परिणाममें राजनीतिक शक्तिके ह्रासका कारण बनती है । प्रो ओरगांस्की अलब्रेनोने कहा था कि ‘यूरोपको विश्वकी सबसे बड़ी शक्ति बनानेमें जनसंख्या-वृद्धिका हाथ है’ (पापुलेशन एण्ड पॉलिटिक्स) । पश्रिमी देशोंमें जनसंख्याकी कमीके साथ-साथ राजनीतिक शक्तिका भी ह्रास हुआ, जिसका पता विश्वयुद्धके बाद लगा । अतः उन देशोंने जनसंख्याको बढ़ानेपर जोर देना आरम्भ कर दिया । इतना ही नहीं, अपनी पूर्व शक्तिको वापिस लानेके लिये पश्चिमी देश पूर्वी देशोंपर यह दबाव डाल रहे हैं कि वे परिवार-नियोजनके द्वारा अपनी जनसंख्याको कम करें । आर्थरमेक कारमेकने स्पष्ट शब्दोंमें कहा है कि ‘विकसित देश यह चाहते हैं कि विकासशील देशोंकी जनसंख्या कम हो जाय, क्योंकि उनकी जनसंख्या-वृद्धिको वे देश अपने उच्च जीवन-स्तर और राजनीतिक सुरक्षाके लिये खतरा समझते हैं । उनका उद्देश्य पिछड़े देशोंको और अधिक पिछड़ा बना देना है, मुख्यरूपसे काले लोगोंको, जिससे कि गोरे लोगोंका आधिपत्य बना रहे’ (अनलिसिस ऑफ लाइफ इन सोसाइटी) । यही कारण है कि विश्वबैंक तथा पश्रिमी देश भारतको इस शर्तपर कर्जा देते हैं कि वह अपनी जनसंख्याको अधिक-से-अधिक कम करे । कारण कि भारतकी जनसंख्या कम हो जायगी और वह कर्जदार हो जायगा तो उसपर उन देशोंका अधिकार हो जायगा !

वर्तमान वोट-प्रणालीका तो जनसंख्याके साथ सीधा सम्बन्ध है । इस प्रणालीके अनुसार सौ मूर्ख निन्यानबे बुद्धिमानोंको हरा सकते हैं, जबकि वास्तवमें सौ मूर्ख मिलकर भी एक बुद्धिमान्‌की समानता नहीं कर सकते । विचार करें कि समाजमें विद्वानोंकी संख्या अधिक है या मूर्खोंकी ? सज्जनोंकी संख्या अधिक है या दुष्टोंकी ? ईमानदारोंकी संख्या अधिक है या बेईमानोंकी ? जिनकी संख्या अधिक होगी, वे ही वोटोंसे जीतेंगे और देशपर शासन करेंगे । जिस जातिकी जनसंख्या अधिक होगी, वही जाति देशपर राज्य करेगी ।

पारिवारिक दृष्टिसे देखा जाय तो जिस परिवारमें बच्चोंकी संख्या अधिक होती है, वे परिवार अधिक उन्नत होते हैं । प्रो कोलन क्लार्कने लिखा है कि ‘अधिक बच्चोंवाले और कम बच्चोंवाले‒दोनो प्रकारके परिवारोंका व्यापक सर्वेक्षण करनेपर यह निष्कर्ष निकला है कि छोटे परिवारवाले बच्चोंकी अपेक्षा बड़े परिवारवाले बच्चे जीवनमें अधिक सफल रहे हैं’ (दैनिक टाइम्स १५. ३ .५९)

मनोवैज्ञानिकोंका कहना है कि जिस बच्चेको अपनेसे छोटे अथवा बड़े भाई-बहनके साथ खेलने-कूदने, रहने, परस्पर विनोद करने आदिका मौका नहीं मिलता, उसका भलीभाँति मानसिक विकास नहीं होता और वह कई नैतिक गुणोंसे वंचित रह जाता है । अगर अपनी और भाई-बहनकी उम्रके बीच बहुत फर्क हो तो (अपनी उम्रके नजदीक उम्रवाला भाई-बहन न मिलनेसे) उसमें मानसिक अवरोध (न्यूरोसिस) तक पैदा हो सकता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे