।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७३, सोमवार
एकादशी श्राद्ध, इन्दिरा एकादशी-व्रत (सबका)
गीतामें भगवन्नाम


कृष्णेति नामानि च निःसरन्ति रात्रन्दिवं वै प्रतिरोमकूपात् ।
यस्यार्जुनस्य प्रति तं सुगीतगीते न नाम्नो महिमा भवेत्किम् ॥

नाम और नामीमें अर्थात् भगवन्नाम और भगवान्‌में अभेद है; अतः दोनोंके स्मरणका एक ही माहात्म्य है । भगवन्नाम तीन तरहसे लिया जाता है‒

(१) मनसे‒मनसे नामका स्मरण होता है,
जिसका वर्णन भगवान्‌ने ‘यो मां स्मरति नित्यशः’ (८ । १४) पदोंसे किया है ।

(२) वाणीसे‒वाणीसे नामका जप होता है, जिसे भगवान्‌ने ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ (१० । २५) पदोंसे अपना स्वरूप बताया है ।

(३) कण्ठसे‒कण्ठसे जोरसे उच्चारण करके कीर्तन किया जाता है, जिसका वर्णन भगवान्‌ने ‘कीर्तयन्तः’ (९ । १४) पदसे किया है ।   

गीतामें भगवान्‌ने ॐ, तत् और सत्‒ये तीन परमात्माके नाम बताये हैं‒‘ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः’ (१७ । २३) । प्रणव-(ओंकार-) को भगवान्‌ने अपना स्वरूप बताया है‒‘प्रणवः सर्ववेदेषु’ (७ । ८), ‘गिरामस्म्येकमक्षरम्’ (१० । २५) । भगवान् कहते हैं कि जो मनुष्य ‘ॐ’इस एक अक्षर प्रणवका उच्चारण करके और मेरा स्मरण करके शरीर छोड़कर जाता है, वह परमगतिको प्राप्त होता है (८ । १३) ।

अर्जुनने भी भगवान्‌के विराट्‌रूपकी स्तुति करते हुए नामकी महिमा कही है; जैसे‒‘हे प्रभो ! कई देवता भयभीत होकर हाथ जोड़े हुए आपके नाम आदिका कीर्तन कर रहे है’ (११ । २१), ‘हे अन्तर्यामी भगवन् ! आपके नाम आदिका कीर्तन करनेसे यह सम्पूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और अनुराग-(प्रेम-) को प्राप्त हो रहा है । आपके नाम आदिके कीर्तनसे भयभीत होकर राक्षसलोग दसों दिशाओंमें भागते हुए जा रहे हैं और सम्पूर्ण सिद्धगण आपको नमस्कार कर रहे हैं । यह सब होना उचित ही है’ (११ । ३६) ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे