।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
त्रयोदशी श्राद्ध
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोता भी श्रद्धा, विश्वास, जिज्ञासा, तत्परता, संयतेन्द्रियता आदिसे युक्त हो और उसका परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य हो तो उसको वक्ताके शब्दोंसे ज्ञान हो जाता है । तात्पर्य है कि वक्ताकी अयोग्यता होनेपर भी श्रोतापर उसकी वाणीका असर नहीं पड़ता और श्रोताकी अयोग्यता होनेपर भी उसपर वक्ताकी वाणीका असर नहीं पड़ता । दोनोकी योग्यता होनेपर ही वक्ताके शब्दका श्रोतापर असर पड़ता है । परन्तु भगवान्‌के नाममें इतनी विलक्षण शक्ति है कि कोई भी मनुष्य किसी श्री भावसे नाम ले, उसका मंगल ही होता है‒

भाय कुभाँय  अनख  आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
                               (मानस १ । २८ । १)

 भगवान्‌का नाम अवहेलना, संकेत, परिहास आदि किसी भी प्रकारसे लिया जाय, वह पापोंका नाश करता ही है‒

साङे्कत्यं परिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा ।
          वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं           विदुः ॥
                                       (श्रीमद्भागवत ६ । २ । ९४)

 भगवान्‌ने अपने नामके विषयमें स्वयं कहा है कि जो जीव श्रद्धासे अथवा अवहेलनासे भी मेरा नाम लेते है, उनका नाम सदा मेरे हृदयमें रहता है‒

                          श्रद्धया  हेलया  नाम  रटन्ति  मम  जन्तवः ।
                          तेषां  नाम  सदा  पार्थ   वर्तते  हृदये  मम ॥

शंका‒गुड़का नाम लेनेसे मुख मीठा नहीं होता, फिर भगवान्‌का नाम लेनेसे क्या होगा ?

समाधान‒जिस वस्तुका नाम गुड़ है, उसके नाममें गुड़ नामवाली वस्तुका अभाव है अर्थात् गुड़के नाममें गुड़ नहीं है; और जबतक गुड़का रसनेन्द्रिय-(जीभ-) के साथ सम्बन्ध नहीं होता, तबतक मुख मीठा नहीं होता; क्योंकि जीभमें गुड़ मौजूद नहीं है । ऐसे ही धनीका नाम लेनेसे धन नहीं मिलता; क्योंकि धनीके नाममें धन मौजूद नहीं है । परन्तु भगवान्‌के नाममें भगवान् मौजूद हैं । नामी- (भगवान्‌-) से नाम अलग नहीं है और नामसे नामी अलग नहीं है । नामीमें नाम मौजूद है और नाममें नामी मौजूद है । अतः नामीका, भगवान्‌का नाम लेनेसे भगवान् मिल जाते हैं, नामी प्रकट हो जाता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे