।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
चतुर्दशी श्राद्ध
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

शंका‒नाम तो केवल शब्दमात्र है, उससे क्या कार्य सिद्ध होगा ?

समाधान‒ऐसे तो शब्दमात्रमे अचिन्त्य शक्ति है, पर नाममें भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़नेकी ही एक विशेष सामर्थ्य है । अतः नाम किसी भी तरहसे लिया जाय, वह मंगल ही करता है । नाम जपनेवालेका भाव विशेष हो तो बहुत जल्दी लाभ होता है‒

सादर सुमिरन    जे नर करही ।
भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥
                          (मानस १ । १११ । २)

 नामजपमें भाव कम भी रहे तो भी नाम जपनेसे लाभ तो होगा ही, पर कब होगा-‒इसका पता नहीं । नामजपकी संख्या ज्यादा बढ़नेसे भी भाव बन जाता है, क्योंकि नामजप करनेवालेके भीतर सूक्ष्म भाव रहता ही है, वह भाव नामकी संख्या बढ़नेसे प्रकट हो जाता है ।

नाम-जप क्रिया (कर्म) नहीं है, प्रत्युत उपासना है; क्योंकि नामजपमें जापकका लक्ष्य, सम्बन्ध भगवान्‌से रहता है । जैसे कर्मोंसे कल्याण नहीं होता । कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाते है; परन्तु कर्मोंके साथ निष्कामभावकी मुख्यता रहनेसे वे कर्म कल्याण करनेवाले हो जाते है । ऐसे ही नामजपके साथ भगवान्‌के लक्ष्यकी मुख्यता रहनेसे नामजप भगवत्साक्षात्कार करानेवाला हो जाता है । भगवान्‌का लक्ष्य मुख्य रहनेसे नाम चिन्मय हो जाता है, फिर उसमें क्रिया नहीं रहती । इतना ही नही, वह चिन्मयता जापकमें भी उतर आती है अर्थात् नाम जपनेवालेका शरीर भी चिन्मय हो जाता है । उसके शरीरकी जड़ता मिट जाती है । जैसे, तुकारामजी महाराज सशरीर वैकुण्ठ चले गये । मीराबाईका शरीर भगवान्‌के विग्रहमें समा गया । कबीरजीका शरीर अदृश्य हो गया और उसके स्थानपर लोगोंको पुष्प मिले । चोखामेलाकी हड्डियोंसे विट्ठलनामकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी ।

प्रश्न‒शास्त्रों, सन्तोंने भगवन्नामकी जो महिमा गायी है, वह कहाँतक सच्ची है ?

उत्तर‒शास्त्रों और सन्तोंने नामकी जो महिमा गायी है, वह पूरी सच्ची है । इतना ही नहीं, आजतक जितनी नाम-महिमा गायी गयी है, उससे नाम-महिमा पूरी नहीं हुई है, प्रत्युत अभी बहुत नाम-महिमा बाकी है । कारण कि भगवान् अनन्त हैं; अतः उनके नामकी महिमा भी अनन्त है‒हरि अनंत हरि कथा अनंता’ (मानस १ । १४० । ३) । नामकी पूरी महिमा स्वयं भगवान् भी नहीं कह सकते‒‘रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ ( १ । २६ । ४)

प्रश्न‒नामकी जो महिमा गायी गयी है, वह नामजप करनेवाले व्यक्तियोंमें देखनेमें नहीं आती, इसमें क्या कारण है ?

उत्तर‒नामके महात्म्यको स्वीकार न करनेसे नामका तिरस्कार, अपमान होता है; अतः वह नाम उतना असर नहीं करता । नामजपमें मन न लगानेसे, इष्टके ध्यानसहित नामजप न करनेसे, हृदयसे नामको महत्त्व न देनेसे, आदि-आदि दोषोंके कारण नामका माहात्म्य शीघ्र देखनेमें नहीं आता । हाँ‌, किसी प्रकारसे नामजप मुखसे चलता रहे तो उससे भी लाभ होता ही है, पर इसमें समय लगता है । मन लगे चाहे न लगे, पर नामजप निरन्तर चलता रहे, कभी छूटे नहीं तो नाम-महाराजकी कृपासे सब काम हो जायगा अर्थात् मन लगने लग जायगा, नामपर श्रद्धा-विश्वास भी हो जायँगे, आदि-आदि ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे