।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७३, सोमवार

वैनायकी श्रीगणेशचतुर्थी-व्रत
सन्तानका कर्तव्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒मनुष्य माता-पिताकी सेवाको भगवत्प्राप्तिका साधन मानता है, साध्य नहीं मानता । अगर वह माता-पिताकी सेवाको ही साध्य मानेगा, अपने प्राणोंका आधार मानेगा तो उसका माता-पिताके चरणोंमें ही प्रेम होगा, फिर उसको भगवत्प्रेम, भगवत्प्राप्ति कैसे होगी ?

उत्तर‒इसमें तीन बातें हैं‒(१) जो माता-पिताकी सेवाको ही साधन और साध्य मानकर उनकी सेवा करता है, उनकी सेवाको अपने प्राणोंका आधार मानता है, उसकी माता-पिताके चरणोंमें प्रेम एवं भक्ति हो जाती है और अन्तमें उसको पितृलोककी प्राप्ति होती है । (२) जो परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य रखते हुए माता-पिताकी सेवाको अपना कर्तव्य समझकर करता है, उसको माता-पितासे सम्बन्ध-विच्छेद होकर परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है । (३) जो माता-पिताको साक्षात् भगवत्स्वरूप मानकर उनकी सेवा करता है उसको भगवत्प्राप्ति हो जाती है । इन तीनोमेंसे जिसमें जिसका भाव बैठे, वही करना चाहिये । जैसे पतिव्रता स्त्री भगवान्‌की, शास्त्रोंकी, महापुरुषोंकी आज्ञाके अनुसार तन-मनसे पतिकी सेवा करती है, उसको पतिलोककी प्राप्ति होती है अर्थात् जो लोक पतिका है, वही लोक पतिव्रताका होता है । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि अगर दुराचारी होनेके कारण पतिका लोक नरक है तो पतिव्रताका लोक भी नरक होगा ! जिस स्त्रीने पतिसेवाको अपना धर्म (कर्तव्य) समझकर पातिव्रत धारण किया है, वह नरकोंमें कैसे जा सकती है ? नहीं जा सकती । उसने पातिव्रत धारण किया है; अतः उसका जो लोक होगा, वही लोक पतिका भी होगा । तात्पर्य है कि पातिव्रतके तपोबलसे उसका और पतिका दोनोंका कल्याण हो जायगा । ऐसे ही जो माता-पिताकी सेवाको ही साधन और साध्य मानकर उनकी सेवा करता है, उसको और उसके माता-पिताको भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है; क्योंकि जो लोक पुत्रका होगा, वही लोक माता-पिताका (पितृलोक) होगा ।

प्रश्न‒कहा गया है कि यह शरीर हमारे कर्मोंसे, भाग्यसे मिला है‒‘बड़े भाग मानुष तनु पावा’; और भगवान्‌ने विशेष कृपा करके मनुष्य-शरीर दिया है‒कबहुँक करि करुना नर देही । देत ईस बिनु हेतु सनेही ॥ तो फिर यह शरीर माता-पितासे मिला है‒यह कहना कहाँतक उचित है ?


उत्तर‒इस शरीरके मिलनेमें प्रारब्ध (कर्म) और भगवत्कृपा तो निमित्त कारण है और माता-पिता उपादान कारण हैं । जैसे, घड़ा मिट्टीसे बनता है तो मिट्टी घड़ेका उपादान कारण है और कुम्हार घड़ा बनानेमें निमित्त बनता है तो कुम्हार निमित्त कारण है । उपादान कारण (खास कारण) वह कहलाता है, जो कार्यरूपमें परिणत होनेमें कारण बनता है । निमित्त कारण कई होते हैं; जैसे‒घडे़के बननेमें कुम्हार, चक्का, डण्डा आदि कई निमित्त कारण हैं, पर कुम्हार मुख्य निमित्त कारण है । ऐसे ही शरीरके पैदा होनेमें माता-पिता ही खास उपादान कारण हैं; क्योंकि उनके रज-वीर्यसे ही शरीर बनता है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे