।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, शनिवार
शारदीय नवरात्रारम्भ, मातामह श्राद्ध
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒जो मनुष्य नामजप तो करता है, पर उसके द्वारा निषिद्ध-कर्म भी होते हैं, उसका उद्धार होगा या नहीं ?

उत्तर‒समय पाकर उसका उद्धार तो होगा ही; क्योंकि किसी भी तरहसे लिया हुआ भगवन्नाम निष्फल नहीं जाता । परन्तु नामजपका जो प्रत्यक्ष प्रभाव है, वह उसके देखनेमें नहीं आयेगा । वास्तवमें देखा जाय तो जिसका एक परमात्माको ही प्राप्त करनेका ध्येय नहीं है, उसीके द्वारा निषिद्ध कर्म होते हैं । जिसका ध्येय एक परमात्मप्राप्तिका ही है, उसके द्वारा निषिद्ध कर्म हो ही नहीं सकते । जैसे, जिसका ध्येय पैसोंका हो जाता है, वह फिर ऐसा कोई काम नहीं करता, जिससे पैसे नष्ट होते हों । वह पैसोंका नुकसान नहीं सह सकता; और कभी किसी कारणवश पैसे नष्ट हो जायँ तो वह बेचैन हो जाता है । ऐसे ही जिसका ध्येय परमात्मप्राप्तिका बन जाता है, वह फिर साधनसे विपरीत काम नहीं कर सकता । अगर उसके द्वारा साधनसे विपरीत कर्म होते हैं तो इससे सिद्ध होता है कि अभी उसका ध्येय परमात्मप्राप्ति नहीं बना है ।

 साधकको चाहिये कि वह परमात्मप्राप्तिका ध्येय दृढ़ बनाये और नाम-जप करता रहे तो फिर उससे निषिद्ध क्रिया नहीं होगी । कभी निषिद्ध क्रिया हो भी जायगी तो उसका बहुत पश्चात्ताप होगा, जिससे वह फिर आगे कभी नहीं होगी ।

प्रश्र‒जिसके पाप बहुत है, वह भगवान्‌का नाम नहीं ले सकता; अतः वह क्या करे ?

उत्तर‒बात सच्ची है । जिसके अधिक पाप होते हैं, वह भगवान्‌का नाम नहीं ले सकता ।

                        वैष्णवे भगवद्द्भक्तौ प्रसादे हरिनाम्नि च ।
                        अल्पपुण्यवतां  श्रद्धा  यथावन्नैव  जायते ॥

 अर्थात् जिसका पुण्य थोड़ा होता है, उसकी भक्तोंमें, भक्तिमें, भगवत्प्रसादमें और भगवन्नाममें श्रद्धा नहीं होती ।

जैसे पित्तका जोर होनेपर रोगीको मिश्री भी कड़वी लगती है । परन्तु यदि वह मिश्रीका सेवन करता रहे तो पित्त शान्त हो जाता है और मिश्री मीठी लगने लग जाती है । ऐसे ही पाप अधिक होनेसे नाम अच्छा नहीं लगता; परन्तु नामजप करना शुरू कर दें तो पाप नष्ट हो जायँगे और नाम अच्छा, मीठा लगने लग जायगा तथा नामजपका प्रत्यक्ष लाभ भी दीखने लग जायगा ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे