।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
श्रीदुर्गानवमी-व्रत
महापापसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)

मूल प्रकृतिसे प्रकट होनेके कारण लक्ष्मी और सरस्वतीकी भी कोई सन्तान नहीं हुई[1] । इसके बाद भगवान् श्रीकृष्णके रोमकूपोंसे असंख्य गोप प्रकट हुए और श्रीराधाके रोमकूपोंसे असंख्य गोप-कन्याएँ प्रकट हुई । भगवान्‌के शापके कारण इन गोप-कन्याओंकी भी कोई सन्तान नहीं हुई[2] इस कथासे यह सिद्ध होता है कि जो स्त्री गर्भ गिराती है वह अगले जन्मोंमें सन्तानका सुख नहीं देख सकेगी !

प्रश्न‒ऐसा देखनेमें आता है कि जिन्होंने गर्भपात किया है, वे स्त्रियाँ भी पुन: गर्भवती होती हैं और उनकी सन्तान भी होती है । अतः यह कैसे मानें कि गर्भपात करनेवालेकी फिर सन्तान नहीं होगी ?

उत्तर‒इस जन्मका तो पहले ही प्रारब्ध बन चुका है; अतः उस प्रारब्धके अनुसार उनकी सन्तान हो सकती है । परंतु अगले जन्ममें (नया प्रारब्ध बननेपर) उनकी सन्तान नहीं होगी । इस जन्ममें किये गये गर्भपातरूप महापापका फल उनको अगले जन्मोंमें भोगना ही पड़ेगा ।

प्रश्न‒गर्भस्राव, गर्भपात और भ्रूणहत्या‒इन तीनोंमें क्या अन्तर है ?

उत्तर‒गर्भमें जीवका शरीर बनना शुरू होनेसे पहले ही रज-वीर्य गिर जाय तो उसको ‘गर्भस्राव’ कहते हैं । जब गर्भमें शरीर बनना शुरू हो जाय, तब उसको गिरा देना, ‘गर्भपात’ कहलाता है । जब गर्भमें स्थित जीवके हाथ, पाँव, मस्तक आदि अंग निकल आते हैं और यह बच्चा है या बच्ची‒इसका भेद स्पष्ट होने लगता है तब उसको गिरा देना ‘भ्रूण-हत्या’ कहलाती है । गर्भस्राव, गर्भपात और भ्रूण-हत्या‒इन तीनोंको किसी भी तरहसे करनेपर महापाप लगता है । हाँ, अपने-आप गर्भ गिर जाय तो उसका पाप नहीं लगता । जैसे, संसारमें बहुत-से जीव अपने-आप मर जाते हैं, पर उसका पाप हमें नहीं लगता; क्योंकि हमने उनको मारा भी नहीं और मारनेकी इच्छा भी नहीं की ।

प्रश्न‒गर्भमें जीव (प्राण) तो रहता नहीं, बादमें आता है फिर गर्भपात पाप कैसे ?

उत्तर‒पुरुषके वीर्यकी एक बूँदमें हजारों जीव होते हैं । उनमेंसे जो जीव रजके साथ चिपक जाता है, गर्भाशयमें रह जाता है, वही बढ़कर गर्भ बनता है । जीवके बिना न तो वीर्य रजके साथ चिपक सकता है और न गर्भ बढ़ ही सकता है । प्राणशक्तिके बिना गर्भ बढ़ ही नहीं सकता । जीवमें प्राणशक्ति पहले सूक्ष्म होती है, पर गर्भमें आते ही प्राणशक्ति स्थूल हो जाती है और गर्भ बढ़ने लगता है । गर्भ बढ़नेपर जब प्राण-शक्ति विशेषतासे प्रतीत होती है और गर्भमें हलचल होने लगती है तब लोग कह देते हैं कि अब गर्भमें जीव आ गया ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[1] अनपत्ये च ते द्वे च यतो राधांशसम्भवाः ।
                                                                               (प्रकृति २ । ६०)

[2] राधाङ्गलोमकूपेभ्यो        बभूबुर्गोपकन्यकाः ।
    राधातुल्याश्च सर्वास्ताः राधातुल्याः प्रियंवदाः ॥
    रत्नभूषणभूषाढ्याः    शश्वत्   सुस्थिरयौवनाः ।
     अनपत्याश्च ताः सर्वाः    पुंसः शापेन सन्ततम् ॥
                                                    (प्रकृति २ । ६४-६५)