।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
विजयादशमी, एकादशी-व्रत कल है
महापापसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒किसीका गर्भ अपने-आप गिर जाय तो ?

उत्तर‒यह एक रोग है और इसका इलाज करना चाहिये । एक स्त्रीके पाँच-छः गर्भ गिर गये । एक सन्तने उसके परिवारवालोंको बताया कि उसके गर्भाशयमें गरमी बहुत है, जिससे गर्भ झुलस जाता है और गिर जाता है; अतः इसके लिये एक उपाय करो । जब उसके गर्भ रह जाय, तब वह इस विधिसे गायका दूध पिये । एक बर्तनपर दूध छाननेवाला कपड़ा डाल दें और कपड़ेपर महीन पिसी मिश्री रख दें । फिर उसपर गायका दूध दुहें, जिससे वह मिश्री दूधमें मिलकर बर्तनमें चली जायगी । यह धारोष्ण दूध वह स्त्री तत्काल गायके सामने ही बैठकर प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक महीनेतक पिये । सन्तके कहे अनुसार उस स्त्रीने दूध पिया तो उसका गर्भ गिरा नहीं और उसकी संतान हो गयी । वह सन्तान अब भी जीवित है ।

इस रोगको मिटानेकी कई ओषधियाँ हैं, जिनको आयुर्वेदमें निष्णात अनुभवी वैद्यसे लेना चाहिये ।

प्रश्न‒किसी रोगके कारण गर्भपात कराना अनिवार्य हो जाय तो क्या करें ?

उत्तर‒गर्भपातका पाप तो लगेगा ही । स्त्रीके बचावके लिये लोग गर्भपात करा देते हैं, पर ऐसा नहीं करना चाहिये, प्रत्युत इलाज करना चाहिये । जो होनेवाला है वह तो होगा ही । स्त्री मरनेवाली होगी तो गर्भ गिरानेपर भी वह मर जायगी । यदि उसकी आयु शेष होगी तो गर्भ न गिरानेपर भी वह नहीं मरेगी । मृत्यु तो समय आनेपर ही होती है, निमित्त चाहे कुछ भी बन जाय । अतः गर्भपात कभी नहीं कराना चाहिये ।

प्रश्न‒कुँवारी अवस्थामें गर्भ रह जाय तो उसको गिराना चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒जिसके संगसे गर्भ रह जाय, उसके साथ विवाह करा देना चाहिये । अगर विवाह न करा सकें तो भी उस गर्भको गिराना नहीं चाहिये । उसका पालन करना चाहिये और थोड़ा बड़ा होनेपर उस बच्चेको अनाथालयमें भरती करा देना चाहिये अथवा कोई गोद लेना चाहे तो उसको दे देना चाहिये ।

यदि कोई कन्याके साथ जबर्दस्ती (बलात्कार) करे तो जबर्दस्ती करनेवालेको बड़ा भारी पाप लगेगा । यदि कन्याने उसमें (संगका) सुख लिया है तो उतने अंशमें उसको भी पाप लगेगा; क्योंकि सभी पाप भोगेच्छासे ही होते हैं । सर्वथा भोगेच्छा न होनेपर पाप नहीं लगता । यदि कुँवारी कन्याके गर्भ रह जाय तो उसके माता-पिताको भी असावधानीके कारण उसका पाप लगता है । अतः माता-पिताको चाहिये कि वे शुरूसे ही बड़ी सावधानीके साथ अपनी कन्याकी सुरक्षा रखें, उसको स्वतन्त्रता न दें ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे