।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
महापापसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)

सन्तोंने कहा है‒

                       के शत्रवः सन्ति निजेन्द्रियाणि
                           तान्येव मित्राणि जितानि यानि ।
                                                                   (प्रश्रोत्तरी ४)

अर्थात् मनुष्य इन्द्रियोंके वशमें हो जाता है तो वे इन्द्रियाँ उसकी शत्रु बन जाती हैं, जिससे उसके लोक-परलोक बिगड़ जाते हैं । परंतु वह इन्द्रियोंको जीत लेता है तो वे इन्द्रियाँ उसकी मित्र बन जाती हैं, जिससे उसके लोक-परलोक सुधर जाते हैं । इसलिये गीताने कहा है‒

उद्धरेदात्मनात्मानं    नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥
                                                   (६ । ५)

‘अपने द्वारा अपना उद्धार करे, अपना पतन न करे, क्योंकि आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।’

प्रश्न‒गर्भपात करनेसे क्या हानि है ?

उत्तर‒गर्भपातसे तो हानि-ही-हानि है । कृत्रिम गर्भस्राव, गर्भपात करानेसे स्त्रीका शरीर खराब हो जाता है, कमजोर हो जाता है । जवानी अवस्थामें भले ही कमजोरीका पता न लगे, पर थोड़ी अवस्था ढलनेपर इसका पता लगने लगेगा । जबतक शरीरमें खून बनता है, तबतक कमजोरीका पूरा पता नहीं लगता, पर खून बनना कम होनेपर कमजोरीका पता लगता ही है । गर्भपातसे बहुतोंको प्रदर हो जाता है । इसके सिवाय गर्भपातसे खून गिरनेका एक रास्ता खुल जाता है ।

बच्चा पैदा होनेसे स्त्रीका शरीर खराब नहीं होता; क्योंकि बच्चा पैदा होना प्राकृत है और वह समयपर होता है । तात्पर्य है कि प्राकृत चीजोंसे स्वाभाविक ही खराबी पैदा नहीं होती, खराबी तो कृत्रिम चीजोंसे ही होती है ।

प्रश्न‒एक-दो बार सन्तान होनेसे स्त्री माँ बन ही गयी, अब वह नसबन्दी ऑपरेशन करवा ले तो क्या हर्ज है ?

उत्तर‒वह माँ तो पहले थी, अब तो नसबन्दी ऑपरेशन करवा लेनेपर उसकी ‘स्त्री’ संज्ञा ही नहीं रही । कारण कि शुक्र-शोणित मिलकर जिसके उदरमें गर्भका रूप धारण करते हैं, उसका नाम स्त्री है[*] जो गर्भ धारण न कर सके, उसका नाम स्त्री नहीं है; और जो गर्भ-स्थापन न कर सके, उसका नाम पुरुष नहीं है । ऑपरेशनके द्वारा सन्तानोत्पत्ति करनेकी शक्ति नष्ट करनेपर पुरुषका नाम तो हिंजडा होगा, पर स्त्रीका क्या नाम होगा‒इसका हमें पता नहीं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[*] ‘स्त्यै शब्दसंघातयोः’ । स्त्यायतः‒संगते भवतः अस्यां शुक्रशोणिते इति स्त्री ।
                                             (सिद्धान्तकौमुदी, बालमनोरमा)