।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७३, मंगलवार
वास्तविक बड़प्पन




(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप जिसके हैं और जो आपका है, उस परमात्माके साथ आप अपना सम्बन्ध ठीक स्वीकार कर लें तो आप वास्तवमें बड़े हो जायँगे । फिर आपमें बड़े-छोटे होनेका अभिमान और दीनता नहीं रहेगी, परंतु दूसरी वस्तुओंके द्वारा अपनेको बड़ा-छोटा मानेंगे तो अभिमान और दीनता कभी जायगी नहीं ।

आने-जानेवाली चीजोंके द्वारा अपनेको बड़ा-छोटा मानना ही तो बन्धन है । बन्धन कोई जानकर थोड़े ही होता है । यह बन्धन छूटा और मुक्त हुए । दूसरोंके द्वारा हम अपनेको बड़ा-छोटा स्वीकार न करें तो हम मुक्त हो गये कि नहीं ? स्वाधीन हो गये कि नहीं ? बताइये ।

श्रोता‒ठीक बात है महाराजजी !

स्वामीजी‒ठीक बात है तो फिर पराधीन क्यों रहे ? आप कृपा करें, अभीसे यह मान लें कि हम पदके द्वारा अपनेको बड़ा नहीं मानेंगे, धनके द्वारा अपनेको बड़ा नहीं मानेंगे । लोग हमारा आदर करें तो अपनेको बड़ा नहीं मानेंगे । लोग हमारा निरादर कर दें तो अपनेको छोटा नहीं मानेंगे । हमें परवाह नहीं कि लोग हमें अच्छा मानें । यह बात आप मान सकते हैं कि नहीं ?

श्रोता‒हाँ, मान सकते हैं ।

स्वामीजी‒तो फिर देरी क्यों करते हैं ? किसकी प्रतीक्षा करते हैं आप ? किसी परिस्थितिकी प्रतीक्षा करते हैं, किसी बलकी प्रतीक्षा करते हैं, किसी समयकी प्रतीक्षा करते हैं, किसी सहारेकी प्रतीक्षा करते हैं, किसी उपदेशकी प्रतीक्षा करते हैं, किसकी प्रतीक्षा करते हैं, बताइये ? मेरी तो प्रार्थना है कि आप अभी-अभी मान लें कि अब हम इन आने-जानेवाली तुच्छ चीजोंके द्वारा अपनेको बड़ा-छोटा नहीं मानेंगे । भगवान्‌ने कहा है‒

आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्य भारत ॥
                                                                   (गीता २ । १४)

अर्थात् जो आने-जानेवाले हैं, अनित्य हैं, उन्हें सह लें । सहनेका अर्थ है उनके आने-जानेका असर अपनेपर न पड़े । उनका असर अपनेपर न पड़े तो इतनी शान्ति, इतना आनन्द होगा, जिसका कोई पारावार नहीं है । आप करके देखें । सच्ची बात है, मैं धोखा नहीं देता हूँ । ऐसी मस्ती आयेगी, जैसे कोई कीचड़मेसे बाहर निकल आया हो ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे