।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.२०७३, बुधवार
करवाचौथ
वेद और श्रीमद्भगवद्गीता




वेद नाम शुद्ध ज्ञानका है, जो परमात्मासे प्रकट हुआ है‒‘ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्’ (गीता ३ । १५), ‘ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा’ (गीता १७ । २३) । वही ज्ञान आनुपूर्वीरूपसे ऋक्, यजुः आदि वेदोंके रूपसे संसारमें प्रकट हुआ है । वेद भगवद्‌रूप हैं और भगवान् वेदरूप हैं । उन वेदोंका सार उपनिषद् हैं और उपनिषदोंका सार श्रीमद्‌भगवद्‌गीता है । वेद तो भगवान्‌के निःश्वास हैं‒‘यस्य निःश्वसित वेदाः’, पर गीता भगवान्‌की वाणी है । वेद और उपनिषद् तो अधिकारी मनुष्योंके लिये हैं, पर गीतामें मनुष्यमात्रका अधिकार है । कौरव-पाण्डवोंके इतिहास-ग्रन्थ महाभारतके अन्तर्गत होनेसे इसके अधिकारी सभी हो सकते हैं । श्रीवेदव्यासजी महाराजने महाभारतरूप पंचम वेदकी रचना भी इसीलिये की थी कि मनुष्यमात्रको वेदोंका ज्ञान प्राप्त हो सके ।

गीतामें भगवान्‌ने वेदोंका बहुत आदर किया है और उनको अपना स्वरूप बताया है‒‘पिताहमस्य जगतो.......ऋक्साम यजुरेव च’ (९ । १७) । जिसमें नियताक्षरवाले मन्त्रोंकी ऋचाएँ हैं, वह ‘ऋग्वेद’ कहलाता है । जिसमें स्वरोंसहित गानेमें आनेवाले मन्त्र हैं, वह ‘सामवेद’ कहलाता है । जिसमें अनियताक्षरवाले मन्त्र हैं, वह ‘यजुर्वेद’ कहलाता है । जिसमें अस्त्र-शस्त्र, भवन-निर्माण आदि लौकिक विद्याओंका वर्णन करनेवाले मन्त्र हैं, वह ‘अथर्ववेद’ कहलाता है । लौकिक विद्याओंका वर्णन होनेसे भगवान्‌ने गीतामें अथर्ववेदका नाम न लेकर केवल ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद‒इन तीन वेदोंका ही नाम लिया है; जैसे‒‘ऋक्साम यजुरेव च’ (९ । १७), ‘त्रैविद्याः’ (९ । २०), ‘त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना’ (९ । २१) ।

भगवान्‌ने वेदोंमें सामवेदको अपनी विभूति बताया है‒‘वेदाना सामवेदोऽस्मि’ (१० । २२) । सामवेदमें ‘बृहत्साम’ नामक एक गीति है, जिसमें इन्द्ररूप परमेश्वरकी स्तुति की गयी है । अतिरात्रयागमें यह एक पृष्ठस्तोत्र है । सामवेदमें सबसे श्रेष्ठ होनेके कारण इस बृहत्सामको भी भगवान्‌ने अपनी विभूति बताया है‒‘बृहत्साम तथा साम्नाम्’ (१० । ३५) ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे