।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल द्वितीया, वि.सं.२०७३, रविवार
महात्मागाँधी-जयन्ती
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा है, वह तो नाम ले सकता है, उसके मुखसे नाम निकल सकता है; परंतु जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा ही नहीं, वह कैसे नाम ले सकता है ?

उत्तर‒एक होना’ होता है और एक करना’ होता है । भाग्य अर्थात् पुराने कर्मोंका फल होता है और नये कर्म किये जाते हैं, होते नहीं । जैसे व्यापार करते हैं और नफा-नुकसान होता है; खेती करते हैं और लाभ-हानि होती है; मन्त्रका सकामभावसे जप (अनुष्ठान) करते हैं और उसका नीरोगता आदि फल होता है । बद्रीनारायण जाते हैं‒यह करनाहुआ और चलते-चलते बद्रीनारायण पहुँच जाते हैं‒यह ‘होनाहुआ । दवा लेते है‒यह करनाहुआ और शरीर स्वस्थ या अस्वस्थ होता है‒यह होनाहुआ । हानि-लाभ, जीना-मरना, यश-अपयश‒ये सब होनेवाले हैं; क्योंकि ये पूर्वजन्ममें किये हुए कर्मोंके फल है[*] । परन्तु नामजप करना नया काम है । यह करनेका है, होनेका नहीं । इसको करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । हाँ, इसमें इतनी बात होती है कि अगर किसीने पहले नामजप किया हुआ है तो नामजपकी महिमा सुनते ही उसकी नामजपमें रुचि हो जायगी और वह सुगमतासे होने लग जायगा । परन्तु पहले जिसका नामजप किया हुआ नहीं है, वह अगर नामकी महिमा सुने तो उसकी नामजपमें जल्दी रुचि नहीं होगी । अगर नामजपकी महिमा कहनेवाला अनुभवी हो तो सुननेवालेकी भी नाममें रुचि हो जायगी और उस अनुभवीके संगमें रहनेसे उसके लिये नामजप करना भी सुगम हो जायगा ।

जो भाग्यमें लिखा है, वह फल होता है, नया कर्म नहीं । नामजप करना शुरू कर दें तो वह होने लग जायगा; क्योंकि नामजप करना नया कर्म, नयी उपासना है । अतः हमारे भाग्यमें नामजप करना, सत्संग करना, शुभ-कर्म करना लिखा हुआ नहीं है’‒ऐसा कहना बिलकुल बहानेबाजी है । नामजप, सत्संग आदि हमारे भाग्यमें नहीं हैं’ऐसा भाव रखना कुसंग है, जो नामजप आदि करनेके भावका नाश करनेवाला है ।

प्रश्न‒नामजपसे भाग्य (प्रारब्ध) पलट सकता है ?

उत्तर‒हाँ, भगवन्नामके जपसे, कीर्तनसे प्रारब्ध बदल जाता है, नया प्रारब्ध बन जाता है; जो वस्तु न मिलनेवाली हो वह मिल जाती है; जो असम्भव है, वह सम्भव हो जाता है‒ऐसा सन्तोंका, महापुरुषोंका अनुभव है । जिसने कर्मोंके फलका विधान किया है, उसको कोई पुकारे, उसका नाम ले तो नाम लेनेवालेका प्रारब्ध बदलनेमें आश्चर्य ही क्या है ? ये जो लोग भीख माँगते फिरते है, जिनको पेटभर खानेको भी नहीं मिलता, वे अगर सच्चे हृदयमें नामजपमें लग जायँ तो उनके पास रोटियोंका, कपड़ोंका ढेर लग जायगा; उनको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी । परन्तु नामजपको प्रारब्ध बदलनेमें, पापोंको काटनेमें नहीं लगाना चाहिये । जैसे अमूल्य रत्नके बदलेमें कोयला खरीदना बुद्धिमानी नहीं है, ऐसे ही अमूल्य भगवन्नामको तुच्छ कामनापूर्तिमें लगाना बुद्धिमानी नहीं है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे


[*] सुनहु भरत भावी प्रबल  बिलखि कहेउ मुनिनाथ ।
   हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ ॥
                                                (मानस २ । १७१)