।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७३, रविवार

स्त्री-सम्बन्धी बातें


प्रश्न‒क्या कन्या स्वयंवर कर सकती है ?

उत्तर‒शास्त्रोंमें स्वयंवरकी बात आती है, परन्तु जिन्होंने स्वयंवर किया है, उन्होंने कष्ट ही उठाया है । सीता, द्रौपदी, दमयन्ती आदिने स्वयंवर किया तो उन्होंने प्रायः दुःख ही पाया । आजकल जो कन्याएँ स्वयंवर करती हैं, खुद ही पतिको चुनती हैं, अपने मनसे विवाह करती हैं, वे कौन-सा सुख पाती हैं ? वे दुःख-ही-दुःख पाती हैं, भटकती ही रहती हैं ।

जो कन्या स्वयंवर करती है, उसकी जिम्मेवारी खुद उसीपर रहती है । पिता कन्याका हितैषी होता है और हितैषी होकर ही वह कन्याके लिये वर ढूँढता है, उसका सम्बन्ध करता है; अतः उस सम्बन्धकी जिम्मेवारी पितापर ही रहती है, कन्यापर नहीं । पिताके द्वारा सम्बन्ध करानेपर कन्यासे कहीं थोड़ी गलती भी हो जाय तो वह माफ हो जायगी; परन्तु स्वयंवर करनेवाली कन्याकी गलती माफ नहीं होगी । जैसे, पुत्र माता-पिताकी सेवा कम भी करे तो उतना दोष नहीं है; क्योंकि वह माता-पितासे उत्पन्न हुआ है, उसने जानकर सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । परन्तु गोद जानेवाला पुत्र माता-पिताकी सेवा नहीं करता तो उसको विशेष दण्ड भोगना पड़ता है; क्योंकि उसने जानकर सम्बन्ध जोड़ा है । कोई किसीके यहाँ नौकरी करता है और नौकरीमें गलती करता है तो उसको माफी नहीं होती; क्योंकि उसने नौकरी स्वयं स्वीकार की है । हाँ, दयालु मालिक उसको माफ कर सकता है, पर वह माफीका अधिकारी नहीं होता । कोई किसीको अपना गुरु बनाता है तो गुरुकी आज्ञाका पालन करना उसकी विशेष जिम्मेवारी होती है । यदि वह गुरु-आज्ञाका पालन नहीं करता, गुरुका तिरस्कार करता है, निन्दा करता है तो उसको भयंकर दण्ड भोगना पडता है । उसको भगवान् भी माफ नहीं कर सकते । भगवान् कुपित हो जायँ तो गुरु माफ करा सकता है, पर गुरु कुपित हो जायँ तो भगवान् भी माफ नहीं करा सकते । अतः स्वयंवर करनेवाली कन्यापर विशेष जिम्मेवारी रहती है ।

प्रश्न‒कन्या विवाह न करके साधन-भजनमें ही जीवन बिताना चाहे तो क्या यह ठीक है  ?

उत्तर‒कन्याके लिये विवाह न करना उचित नहीं है; क्योंकि वह स्वतन्त्र रहकर अपना जीवन-निर्वाह कर ले‒ऐसा बहुत कठिन है अर्थात् विवाह न करनेसे उसके जीवन-निर्वाहमें बहुत कठिनता आयेगी । जबतक माँ-बाप हैं, तबतक तो ठीक है, पर जब माँ-बाप नहीं रहते, तो फिर प्रायः भाईलोग (अपनी स्त्रियोंके वशीभूत होनेसे) बहनका आदर नहीं करते, प्रत्युत बहनका तिरस्कार करते हैं, उसको हीन दृष्टिसे देखते हैं । भौजाइयाँ भी उसको तिरस्कारकी दृष्टिसे देखती हैं । इससे कन्याके मनमें पराधीनताका अनुभव होता है । अतः विवाह कर लेना अच्छा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे