।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

हमने ऐसे स्त्री-पुरुषोंको भी देखा है, जिन्होंने विवाहसे पहले ही यह प्रतिज्ञा कर ली कि हम स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध न रखकर केवल साधन-भजन ही करेंगे; और वे अपनी प्रतिज्ञा निभाते आये हैं । यद्यपि आजके जमानेमें ऐसे लड़के मिलने कठिन हैं, जो केवल साधन-भजनके लिये ही विवाह करें, तथापि उनका मिलना असम्भव नहीं है ।

मीराबाईकी तरह जो बचपनसे ही भजन-स्मरणमें लग जाय, उसकी तो बात ही अलग है; परन्तु यह विधान नहीं है, भाव है । इस भावमें भी कठिनता आती है । मीराबाईके जीवनमें बहुत कठिनता आयी थी, पर भगवान्‌के दृढ़ विश्वासके बलपर वह सब कठिनताओंको पार कर गयी । ऐसा दृढ़ विश्वास बहुत कम होता है ।

जिसमें ऐसा दृढ़ विश्वास हो, उसके लिये यह विधान नहीं है कि वह विवाह न करे अथवा वह विवाह करे । तात्पर्य है कि भगवान्‌पर दृढ़ श्रद्धा-विश्वास हो तो मनुष्य कहीं भी रहे, वह श्रेष्ठ हो ही जायगा ।

प्रश्न‒क्या स्त्रीको साधु-संन्यासी बनना उचित है ?

उत्तर‒पुरुषको तो यह अधिकार है कि उसको संसारसे वैराग्य हो जाय तो वह घर आदिका त्याग करके, विरक्त होकर भजन-स्मरण करे, पर स्त्रियोंके लिये ऐसी आज्ञा हमने कहीं देखी नहीं है । अतः स्त्रीको साधु-संन्यासी बनना उचित नहीं है । उसको तो घरमें ही रहकर अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिये । वह घरमें ही त्यागपूर्वक, संयमपूर्वक रहे‒इसीमें उसकी महिमा है ।

वास्तवमें त्याग-वैराग्यमें जो तत्त्व है वह साधु-संन्यासी बननेमें नहीं है । जिसके भीतर पदार्थोंकी गुलामी नहीं है, वह घरमें रहते हुए ही साध्वी है, संन्यासिनी है ।

प्रश्न‒पतिव्रता, साध्वी और सती किसे कहते हैं ?

उत्तर‒यद्यपि शब्दकोशके अनुसार पतिव्रता, साध्वी और सती‒तीनों नाम एक ही अर्थमें हैं, तथापि तीनोंमें भेद किया जाय तो पतिके रहते हुए जो अपने नियममें दृढ रहती है, वह पतिव्रता’ है; पतिके न रहनेपर जो अपने नियममें, त्यागमें दृढ़ रहती है, वह साध्वी’ है; और जो सत्यका पालन करती है, जिसका पतिके साथ दृढ़ सम्बन्ध रहता है जो पतिके मरनेपर उसके साथ सती हो जाती है, वह सती’ है ।

प्रश्न‒सतीप्रथा उचित है या अनुचित ?

उत्तर‒सती होना प्रथा’ है ही नहीं । पतिके साथ जल जाना सती होना नहीं है । जिसके मनमें सत् आ जाता है, उत्साह आ जाता है, वह आगके बिना भी जल जाती है और उसको जलनेका कोई कष्ट भी नहीं होता । यह कोई प्रथा नहीं है कि वह ऐसा ही करे, प्रत्युत यह तो उसका सत्य है, धर्म है, शास्त्र-मर्यादापर विश्वास है । 

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे