।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
एकादशी-व्रत कल है
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

हरदोई जिलेमें इकनोरा नामका गाँव है । वहाँ एक लड़की अपनी ननिहालमें थी । पति बीमार था, वह मर गया । उसको पतिके मरनेका समाचार मिला । उसने मामासे पूछा कि सती सुलोचनाको पतिका सिर नहीं मिलता तो वह क्या करती ? मामाने कहा कि मुझे क्या पता ? उसने कहा कि मामाजी ! मैं सती होऊँगी । मामाने कहा कि ऐसा नहीं करना बेटी ! उसने कहा कि मैं करती नहीं हूँ, होता है । उसने दीपक जलाया और उसपर अपनी अँगुली रखी तो उसकी अँगुली मोमबत्तीकी तरह जलने लगी । उसने मामासे कहा कि आप मुझे सती होनेकी आज्ञा देते हैं या नहीं । नहीं तो आपका यह सारा घर भस्म हो जायगा । मामाने कहा कि अच्छा तेरी जैसी मरजी हो, वैसा कर । उसने जलती हुई अँगुलीको एक दीवारपर बुझाया और घरसे बाहर जाकर पीपलवृक्षके नीचे खड़ी हो गयी तथा मामासे कहा कि मुझे लकड़ी दो । मामाने कहा कि हम न लकड़ी देंगे, न आग । गाँवके लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे । उसने हाथ जोड़कर सूर्यभगवान्‌से प्रार्थना की कि हे नाथ ! आप आग दो । ऐसा कहते ही वह वहाँ खड़ी-खड़ी अपने-आप जल गयी ! उस आगसे पीपलके पत्ते जल गये । यह सब गाँवके लोगोंने अपनी आँखोंसे देखा । वहाँके मुसलमानोंसे पूछा गया तो उन्होंने भी कहा कि यह सब घटना हमारे सामने घटी है । करपात्रीजी महाराज भी वहाँ गये थे और उन्होंने दीवारपर काली लकीर देखी, जहाँ उसने अपनी जलती हुई अँगुली बुझायी थी और पीपलके जले हुए पत्ते भी देखे ।

तात्पर्य है कि यह सतीप्रथा नहीं है । यह तो उसका खुदका धार्मिक उत्साह है । इस विषयमें प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजीने सतीधर्म हिन्दूधर्मकी रीढ़ है’ नामक पुस्तक लिखी है[1], उसको पढ़ना चाहिये ।

प्रश्न‒पतिव्रताके भाव और आचरण कैसे होते हैं ?

उत्तर‒उसमें धार्मिक भावोंकी प्रबलता होती है, जिससे वह तन-मनसे पतिकी सेवा करती है । पतिके मनमें ही अपना मन मिला देती है, अपना कुछ नहीं रखती । उसका मन पतिमें ही खिंचा रहता है । उसका यह पातिव्रत ही उसकी रक्षा करता है ।

प्रायः पतिव्रताका सम्बन्ध पूर्वजन्मके पतिके साथ ही होता है । कहीं-कहीं ऐसा भी होता है कि बचपनमें कन्याको अच्छी शिक्षा, अच्छा संग मिलनेसे उसके भाव अच्छे बन जाते हैं तो वह विवाह होनेपर पतिव्रता बन जाती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे




[1] इस पुस्तकके मिलनेका पता है‒संकीर्तन-भवन, धार्मिक ट्रस्ट, प्रतिष्ठानपुर (झूसी), इलाहाबाद ।