।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
रम्भा एकादशी-व्रत (सबका), गोवत्स-द्वादशी
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒पतिव्रताकी पहचान क्या है ?

उत्तर‒पतिव्रताके घरमें शान्ति रहती है और सभी अपने-अपने धर्मका पालन करनेवाले होते हैं । उसकी सन्तान भी श्रेष्ठ, माता-पिताकी भक्त होती है । पड़ोसियोंपर, मोहल्लेवालोंपर भी उसके भावोंका असर पड़ता है । पतिव्रताको देखनेवालेका दुर्भाव मिट जाता है । परन्तु सब जगह यह नियम लागू नहीं होता; क्योंकि पतिव्रताको देखकर अपने भीतरके अच्छे भाव ही जाग्रत् होते हैं । जिसके भीतर अच्छे भाव, संस्कार नहीं हैं, उसपर पतिव्रताका उतना असर नहीं पड़ता । जैसे, एक व्याधने दमयन्तीको अजगरके मुखसे छुड़ाया, पर उसके रूपको देखकर वह मोहित हो गया और उसके भीतर दुर्भाव पैदा हो गया । दमयन्तीके शापसे वह वहीं भस्म हो गया । युधिष्ठिर बड़े धर्मात्मा, सात्त्विक पुरुष थे, परन्तु दुर्योधनपर उनका असर नहीं पड़ा ।

प्रश्न‒क्या वर्तमान समयमें पातिव्रतधर्मका पालन हो सकता है ?

उत्तर‒पातिव्रतधर्मका पालन करनेमें वर्तमान समय कोई बाधक नहीं है । अपने धर्मका पालन करनेमें सबको सदासे स्वतन्त्रता है । धर्मसे विरुद्ध काम करनेमें ही शास्त्र, धर्म, मर्यादा आदि बाधक हैं ।

प्रश्न‒क्या पति पत्नीका त्याग कर सकता है ?

उत्तर‒पत्नी अच्छी है, सुशील है, पर रंगकी काली है, माँके साथ उसकी नहीं बनती, कभी माँका कहना नहीं मानती और माँ कहती है कि इसको छोड़ दो‒ऐसी स्थितिमें जो पत्नीको छोड़ देता है, वह महापाप करता है, घोर अन्याय करता है; अतः वह घोर नरकोंमें जायगा । आजकलके लड़के पत्नीको दोषी समझकर उसका त्याग कर देते हैं तो क्या वे खुद सर्वथा दूधके धोये हुए हैं ! अतः पत्नीका कभी त्याग नहीं करना चाहिये ।

प्रश्न‒अगर पत्नी दुश्चरित्रा, व्यभिचारिणी हो तो उसका त्याग करना चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒आजकलके जमानेमें जहाँतक बने, उस पत्नीका त्याग नहीं करना चाहिये । अपनी सामर्थ्यके अनुसार उसपर शासन करना चाहिये, उसको सुधारनेकी चेष्टा करनी चाहिये । यदि उसको दण्ड ही देना हो तो उससे बातचीत न करे और उसके हाथसे बना भोजन भी न करे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे