।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
स्त्री-सम्बन्धी बातें


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒पतिका आधा पुण्य पत्नीको और पत्नीका आधा पाप पतिको मिलता है‒ऐसा क्यों ?

उत्तर‒पत्नीने अपने माता-पिता, भाई-भौजाई आदि सबका, घरभरका त्याग किया है और पुण्य त्यागसे होता है । उसने अपने गोत्रतकका त्याग करके पतिके मनमें अपना मन मिला दिया है ! अतः वह पुण्यकी भागी होती है । पति सन्ध्या-गायत्री आदि करता है तो उसका भी आधा फल (पुण्य) पत्नीको मिलता है । इसीलिये पतिके दो जनेऊ होते हैं‒एक अपना और एक पत्नीका । स्त्रीको बचपनमें शिक्षा देना माता-पिता, भाई आदिके अधीन होता है और विवाह होनेपर शिक्षा देना पतिके अधीन होता है । अगर पतिसे अच्छी शिक्षा न मिलनेके कारण पत्नी पाप करती है तो उसका आधा पाप पतिको लगता है ।

अगर पति अच्छी शिक्षा देता है पर पत्नी पतिका कहना नहीं मानती, पाप करती है तो उसका आधा पाप पतिको नहीं लगता; क्योंकि उसने अपनी जिम्मेवारी खुदपर ही ली है । ऐसे ही जो स्त्री पतिके कहनेमें चलती है पतिके अधीन रहती है, वही पतिके आधे पुण्यकी भागीदार होती है । जो पतिके कहनेमें नहीं चलती, वह पतिके आधे पुण्यकी भागीदार नहीं होती ।

प्रश्न‒विधर्मी लोग किसी स्त्रीका अपहरण करके ले जायँ तो उस स्त्रीको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒उसको जहाँतक बने, वहाँसे छूटनेका प्रयास करना चाहिये और मौका लगनेपर वहाँसे भाग जाना चाहिये । कोई भी उपाय न चले तो भगवान्‌को पुकारना चाहिये । भगवान् किसी-न-किसी प्रकारसे छुड़ा देंगे ।

एक स्त्रीको मुखमें कपड़ा ठूँसकर, दोनों हाथ पीठके पीछे बाँधकर और ऊपरसे बुरका पहनाकर विधर्मीलोग रेलमें ले जा रहे थे । लखनऊ स्टेशनपर जब टीटी टिकट देखनेके लिये उस स्त्रीके पास आकर खड़ा हुआ, तब उस स्त्रीने अपने पैरसे टीटीका पैर दबाया । टीटीने विचार किया कि इसने मेरा पैर क्यों दबाया ! इसमें कुछ-न-कुछ रहस्य है ! उसने रेलवे पुलिसको बुलाया । पुलिसने जाँच करके उस स्त्रीको छुड़ा लिया और उसका अपहरण करनेवालोंको पकड़ लिया । ऐसे ही नोआखालीमें विधर्मीने एक स्त्रीको पकड़ लिया । उस स्त्रीने भगवान्‌को पुकारा । इतनेमें दूसरा विधर्मी आया और कहने लगा कि इसको मैं अपनी स्त्री बनाऊँगा । इसी बातको लेकर दोनों आदमियोंमें लड़ाई हो गयी । वे दोनों आपसमें लड़कर मर गये और उस स्त्रीकी रक्षा हो गयी ।

प्रश्न‒जिसकी स्त्रीको विधर्मी ले गये, उस पुरुषका क्या कर्तव्य है ?


उत्तर‒पुरुषमें उसको छुड़ाकर लानेकी सामर्थ्य हो और वह प्रसन्नतासे आना चाहे तो उसको अपने घरमें ले आना चाहिये । कारण कि उसके साथ जबर्दस्ती हुई है, अतः उसका एक पतिव्रत नहीं रहा, पर उसका धर्म नहीं बिगड़ा । धर्म तो स्वयं (अपनी इच्छासे) छोड़नेपर ही बिगड़ता है । जबर्दस्ती करके कोई भी किसीका धर्म नहीं छुड़ा सकता, उसको धर्मभ्रष्ट नहीं कर सकता ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे