।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७३, बुधवार
गीतामें भगवन्नाम


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्र‒शास्त्रोंमें आता है कि जो नाम नहीं लेना चाहता, जिसकी नामपर श्रद्धा नहीं है, उसको नाम नहीं सुनाना चाहिये; क्योंकि यह नामापराध है; फिर भी गौरांग महाप्रभु आदिने नामपर श्रद्धा न रखनेवालोंको भी नाम क्यों सुनाया ?

उत्तर‒जो नाम नहीं सुनना चाहता, मुखसे भी नहीं लेना चाहता, नामका तिरस्कार करता है, उसको नाम नहीं सुनाना चाहिये‒यह विधि है, शास्त्रकी आज्ञा है; फिर भी सन्त-महापुरुष दया करके उसको नाम सुना देते है । उनकी दयामें विधि-निषेध लागू नहीं होता । विधि-निषेध कर्ममें लागू होता है और दयाकर्मसे अतीत है । दया अहैतुकी होती है, हेतुके बिना की जाती है । जैसे, कोई भगवत्प्राप्त सन्त-महापुरुष अपनी सामर्थसे दूसरेकी कोई चीज देता है तो यह चीज लेनेवालेके पूर्वकर्मका फल नहीं है, यह तो उस सन्त-महापुरुषकी दया है । ऐसे ही गौरांग महाप्रभु आदि सन्तोंने दया-परवश होकर दुष्ट, पापी व्यक्तियोंको भी भगवन्नाम सुनाया ।

प्रश्र‒अगर मरणासन्न पशु, पक्षी आदिको भगवन्नाम सुनाया जाय तो क्या उनका उद्धार हो सकता है ?

उत्तर‒पशु पक्षी आदि भगवन्नामके प्रभावको नहीं समझते और अपने-आप प्रभाव आ जाय तो वे उसका विरोध भी नहीं करते । वे नामकी निन्दा, तिरस्कार नहीं करते, नामसे घृणा नहीं करते । अतः उनको मरणासन्न अवस्थामें नाम सुनाया जाय तो उनपर नामका प्रभाव काम करता है अर्थात् नामके प्रभावसे उनका उद्धार हो जाता है ।

प्रश्न‒अन्तसमयमें कोई अपने पुत्र आदिके रूपमें भी नारायण’,वासुदेव’ आदि नाम लेता है तो उसको भगवान् अपना ही नाम मान लेते हैं; ऐसा क्यों ?

उत्तर‒भगवान् बहुत दयालु हैं । उन्होंने यह विशेष छूट दी हुई है कि अगर मनुष्य अन्तसमयमें किसी भी बहाने भगवान्‌का नाम ले ले, उनको याद कर ले तो उसका कल्याण हो जायगा । कारण कि भगवान्‌ने जीवका कल्याण करनेके लिये ही उसको मनुष्यशरीर दिया है और जीवने उस मनुष्यशरीरको स्वीकार किया है । अतः जीवका कल्याण हो जाय, तभी भगवान्‌का इस जीवको मनुष्यशरीर देना और जीवका मनुष्यशरीर लेना सार्थक होगा । परन्तु वह अपना कल्याण किये बिना ही मनुष्यशरीरको छोड़कर जा रहा है, इसलिये भगवान् उसको मौका देते है कि अब जाते-जाते तू किसी भी बहाने मेरा नाम ले ले, मेरेको याद कर ले तो तेरा कल्याण हो जायगा ! जैसे अंतसमयमें भयानक यमदूत दीखनेपर अजामिलने अपने पुत्र नारायणको पुकारा तो भगवान्‌ने उसको अपना ही नाम मान लिया और अपने चार पार्षदोंको अजामिलके पास भेज दिया ।

तात्पर्य है कि मनुष्यको रात-दिन, खाते-पीते, सोते-जागते, चलते-फिरते, सब समय भगवान्‌का नाम लेते ही रहना चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे