।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
महापापसे बचो



ब्रह्महत्या सुरापानं   स्तेयं गुर्वङ्गनागमः ॥
महान्ति पातकान्याहुः संसर्गश्चापि तैः सह ।
                                           (मनुस्मृति ११ । ५४)

‘ब्राह्मणकी हत्या करना, मदिरा पीना, स्वर्ण आदिकी चोरी करना और गुरुपत्नीके साथ व्यभिचार करना‒ये चार महापाप हैं । इन चारोमेंसे किसी भी महापापको करनेवालेके साथ कोई तीन वर्षतक रहता है, उसको भी वही फल मिलता है जो महापापीको मिलता है ।’[*]

१.   ब्रह्महत्या

चारों वर्णोंका गुरु ब्राह्मण है‒‘वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः’, शास्त्रीय ज्ञानका जितना प्रकाश ब्राह्मण-जातिसे हुआ है, उतना और किसी जातिसे नहीं हुआ है । अतः ब्राह्मणकी हत्या करना महापाप है । इसी तरह जिससे दुनियाका हित होता है ऐसे हितकारी पुरुषोंको, भगवद्भक्तको तथा गाय आदिको मारना भी महापाप ही है । कारण कि जिसके द्वारा दूसरोंका जितना अधिक हित होता है, उसकी हत्यासे उतना ही अधिक पाप लगता है ।

२.   मदिरापान

मांस, अण्डा, सुल्फा, भाँग आदि सभी अशुद्ध और नशा करनेवाले पदार्थोंका सेवन करना पाप है; परंतु मदिरा पीना महापाप है । कारण कि मनुष्यके भीतर जो धार्मिक भावनाएँ रहती हैं; धर्मकी रुचि, संस्कार रहते हैं, उनको मदिरापान नष्ट कर देता है । इससे मनुष्य महान् पतनकी तरफ चला जाता है ।

मदिराके निर्माणमें असंख्य जीवोंकी हत्या होती है । गंगाजी सबको शुद्ध करनेवाली हैं; परन्तु यदि गंगाजीमें मदिराका पात्र डाल दिया जाय तो वह शुद्ध नहीं होता । जब मदिराका पात्र भी (जिसमें मदिरा डाली जाती है) इतना अशुद्ध हो जाता है, तब मदिरा पीनेवाला कितना अशुद्ध हो जाता होगा‒इसका कोई ठिकाना नहीं है । मुसलमानोंके धर्मकी यह बात मैंने सुनी है कि शरीरके जिस अंगमें मदिरा लग जाय, उस अंगकी चमड़ी काटकर फेंक देनी चाहिये ।

प्रश्न‒आजकल कई अंग्रेजी दवाइयोंमें मदिरा मिली रहती है । अगर स्वास्थ्यके लिये ओषधिरूपसे उनका सेवन किया जाय तो क्या महापाप लगेगा ?

उत्तर‒जिनमें मदिरा है, उन ओषधियोंके सेवनसे महापाप लगेगा ही ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे




[*] स्तेनो हिरण्यस्य सुरां पिबश्च गुरोस्तल्पमावसन्ब्रह्महा चैते पतन्ति चत्वारः पञ्चमश्चार स्तैरिति ॥
                                                                                       (छान्दोग्य ५ । १० । १)