।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
महापापसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒अगर परिवारमें एक व्यक्ति मदिरापान करता है तो उसके संगके कारण पूरे परिवारको महापाप लगेगा क्या ?

उत्तर‒नहीं । परिवारवालोंकी दृष्टिमें वह कुटुम्बी है; अतः वे मदिरा पीनेवालेका संग नहीं करते, प्रत्युत परवशतासे कुटुम्बीका संग करते हैं । ऐसे ही अगर पति मदिरा पीता हो और स्त्रीको रात-दिन उसके साथ रहना पड़ता है तो स्त्रीको महापाप नहीं लगेगा, क्योंकि वह मदिरा पीनेवालेका संग नहीं करती, प्रत्युत परवशतासे पतिका संग करती है । रुचिपूर्वक संग करनेसे ही कुसंगका दोष लगता है ।

प्रश्न‒जो पहले अनजानमें मदिरा पीता रहा है, पर अब होशमें आया है तो वह महापापसे कैसे शुद्ध हो ?

उत्तर‒वह सच्चे हृदयसे पश्चात्ताप करके मदिरा पीना सर्वथा छोड़ दे और निश्रय कर ले कि आजसे मैं कभी भी मदिरा नहीं पीऊँगा तो उसका सब पाप माफ हो जायगा । जीव स्वतः शुद्ध है‒‘चेतन अमल सहज सुखरासी ॥’ अतः अशुद्धिको छोड़ते ही उसको नित्यप्राप्त शुद्धि प्राप्त हो जायगी, वह शुद्ध हो जायगा ।

३. चोरी

किसी भी चीजकी चोरी करना पाप है; परन्तु सोना, हीरा आदि बहुमूल्य चीजोंकी चोरी करना महापाप है । तात्पर्य है कि जो वस्तु जितनी अधिक मूल्यवान् होती है, उसकी चोरी करनेपर उतना ही अधिक पाप लगता है ।

४. गुरुपत्नीगमन

वीर्य (ब्रह्मचर्य)-नाशके जितने उपाय हैं, वे सभी पाप हैं[1]; परन्तु गुरुपत्नीगमन करना महापाप है । कारण कि हमें विद्या देनेवाले, हमारे जीवनको निर्मल बनानेवाले गुरुकी पत्नी माँसे भी बढ़कर होती है । अतः उसके साथ व्यभिचार करना महापाप है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[1] वीर्यकी एक बूँदमें हजारों जीव होते हैं । स्त्री-संगसे जो वीर्य नष्ट होता है, उसमेंसे जो जीव गर्भाशयमें रजके साथ चिपक जाता है, वही गर्भ बनता है । शेष सब जीव मर जाते हैं, जिनकी हिंसाका पाप लगता है । हाँ, केवल सन्तानोत्पत्तिके उद्देश्यसे ऋतुकालमें स्त्री-संग करनेसे पाप नहीं लगता (पाप होता तो है, पर लगता नहीं); क्योंकि यह शास्त्रकी, धर्मकी आज्ञाके अनुसार है‒‘स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्विषम्’ (गीता १८ । ४७); ‘धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि’ (गीता ७ । ११) । परंतु केवल भोगेच्छासे स्त्रीका संग करनेसे उस हिंसाका पाप लगता ही है । इसलिये कहा है‒

एक बार भग भोग ते,     जीव हतै नौ लाख ।
जन मनोर नारी तजी, सुन गोरख की साख ॥