।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
श्रीतुलसी-विवाह,प्रबोधिनी एकादशी-व्रत (वैष्णव)
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

अगर आप सुगमतासे भगवत्प्राप्ति चाहते हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आप मैं भगवान्‌का हूँ’यह मान लें । यह चुप साधन’ अथवा मूक सत्संग’ से भी बढ़िया साधन है ! जैसे आपके घरकी कन्या विवाह होनेपर मैं ससुरालकी हूँ’यह मान लेती है, ऐसे आप मैं भगवान्‌का हूँ’यह मान लें । यह सबसे सुगम और सबसे बढ़िया साधन है । इसको भगवान्‌ने सबसे अधिक गोपनीय साधन कहा है‒‘सर्वगुह्यतमम्’ (गीता १८ । ६४) । गीताभरमें यह सर्वगुह्यतमम्’ पद एक ही बार आया है । मैं हाथ जोड़कर प्रेमसे कहता हूँ कि मेरी जानकारीमें यह सबसे बढ़िया साधन है ।

आप जहाँ हैं, वहाँ ही अपनेको भगवान्‌का मान लो । चिन्ता बिल्कुल छोड़ दो । जो हमारा मालिक है, वह चिन्ता करे, मैं चिन्ता क्यों करूँ ?

चिन्ता दीनदयाल को, मो मन सदा आनन्द ।
जायो सो  प्रतिपालसी,  रामदास  गोबिन्द ॥

वास्तवमें आप बिल्कुल भगवान्‌के ही हैं, पर आपने मान रखा है कि मैं अमुक देश, गाँव, मोहल्ले, घर आदिका हूँ । यह देश, गाँव, मोहल्ला, घर आपका नहीं है । आप यहाँ आये हो । इसलिये मेरी सम्मति यही है कि आप आजसे ही यह स्वीकार कर लो कि मैं भगवान्‌का हूँ’ । हर समय भगवान्‌के ही होकर रहो । भजन करो तो भगवान्‌के होकर भजन करो । संसारके होकर भजन करते हो तो वह भजन बढ़िया नहीं होता ।
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श्रोता‒अच्छे कर्म करना या संसारको अपना न मानना या भगवान्‌को अपना मानना‒तीनों साधनोंमें कौन-सा साधन बढ़िया है, जिससे हमारे राग-द्वेष दूर हो जायँ और हमारा कल्याण हो जाय ?

स्वामीजी‒भगवान्‌को अपना मानना सबसे श्रेष्ठ साधन है । भगवान्‌को अपना माननेसे भगवत्कृपासे राग-द्वेष भी दूर हो जाते हैं, समता भी आ जाती है, शान्ति भी मिल जाती है, मुक्ति भी हो जाती है । कारण कि मूलमें हम भगवान्‌के अंश हैं‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५ । ७) । इस मूलको ठीक करनेसे सब ठीक हो जायगा ।

श्रोता‒इष्ट तो एक होना चाहिये, पर जब हम हरे राम.....’ मन्त्रका जप करते हैं तो हमें राम और कृष्ण दोनों याद आते हैं ! हम क्या करें ?

स्वामीजी‒राम और कृष्ण दो नहीं हैं, एक ही हैं‒यह विचार कर लो अथवा यह मान लो कि राम ही कृष्ण बने हैं । चाहे दोनोंको एकरूप कर लो, चाहे दोनोंको एकरूप मान लो ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे