।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, शनिवार
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोता‒भगवान्‌के आनन्दकी अनुभूति क्यों नहीं होती ?

स्वामीजी‒संसारके सुखमें आसक्ति होनेके कारण । इसको जबतक नहीं छोड़ोगे, तबतक भगवान्‌के आनन्दका अथवा निजानन्दका अनुभव नहीं होगा ।
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श्रोता‒दो समुदायोंमें प्रेम कैसे बना रहे ?

स्वामीजी‒अपनी जिद छोड़ दे । जो अपनी जिद पहले छोड़ दे, उसीकी महिमा है । दोनों समुदायोंके मुख्य-मुख्य आदमी विचार कर लें तो आपसकी खटपट मिट सकती है । प्रेमकी महिमा सबसे अधिक है । प्रेमकी जितनी महिमा है, उतनी महिमा ज्ञानकी भी नहीं है और भगवान्‌के साक्षात् दर्शनकी भी नहीं है ! यदि आपसमें निष्काम प्रेम हो जाय तो वह प्रेम भगवत्प्राप्तिमें कारण हो जाता है !

आपसमें जो वैर-विरोध होता है, वह प्रारब्धसे नहीं होता, प्रत्युत अपनी गलतीसे होता है । अपनी गलतीको मिटानेमें हम स्वतन्त्र हैं । अपनी गलती मिटा दें, अपना अभिमान छोड़ दें तो प्रेम हो जायगा । वैर रखनेसे बहुत नुकसान होता है । जिस घरमें लड़ाई होती है, उस घरकी कन्या कोई लेना नहीं चाहता कि हमारे घरमें चिनगारी आ जायगी तो आग लग जायगी ! आपसमें खटपट होनेसे कुएँका पानीतक सूख जाता है ! आपसमें प्रेम होनेसे धन-सम्पत्ति भी बढ़ जाती है‒

जहाँ  सुमति   तहँ  संपति  नाना ।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ॥
                               (मानस, सुन्दर ४० । ३)

जिस घरमें प्रेम होता है, उस घरकी रोटी साधु भी लेना चाहते हैं, जिससे अन्तःकरण शुद्ध हो । आपसमें स्नेह होता है‒नम्रतासे, सरलतासे, सीधेपनसे, द्वेष न रखनेसे, ईर्ष्या न रखनेसे ।

अपने-अपने घरोंमें, गाँवोंमें एक-दूसरेकी सेवा करो, सुख पहुँचाओ । दूसरोंको सुख पहुँचानेकी अपनी आदत बना लो । जो गरीब घर हैं, जहाँ अन्न-वस्त्रकी तंगी है, उन घरोंमें छिपकर अन्न-वस्त्र पहुँचाओ, गरीब बालकोंको पढ़ाओ, उनकी सहायता करो तो आपका पैसा सफल हो जायगा । इसका बड़ा भारी पुण्य होगा । यह निश्चित बात है कि जिस दिन मरोगे, पैसा छोड़कर ही मरोगे । आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ कि पैसा सब खर्च हो गया, पीछे आदमी मरा । विरक्त, त्यागी सन्त-महात्माकी भी तूँबी, लँगोटी पीछे रहती है, मरता है पहले !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे